बिहार चुनाव के परिणामों पर उत्तर प्रदेश की भी नज़र थी जहां 2017 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उत्तर प्रदेश को भाजपा ने रह-रहकर जिस प्रकार साम्प्रदायिक बनाने की कोशिशें की हैं बिहार नतीजे आने के बाद उन कोशिशों पर पानी फिरता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश के चुनावों पर बिहार में हुई हार का असर ज़रूर पड़ेगा। इस हार से भाजपा को सबक लेना चाहिए कि सांप्रदायिक माहौल बनाकर हम हंगामा खड़ा कर सकते हैं मगर जीत के लिए जन मानस को समझना ज़रूरी है।
दिल्ली के बाद बिहार चुनाव में भाजपा की हुई हार के बाद अब भाजपा के अन्दर ही मोदी के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर हो गए हैं। मार्गदर्षक मंडल के नेता जिन्हें बूढ़ा मानकर किनारे कर दिया थाए अब बोलने लगे हैं। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत पर लगाम दिल्ली चुनाव ने लगाई थी तो बिहार चुनाव नतीजों ने भाजपा की जीत के रथ के पहिए उखाड़ दिए हैं। अभी तक जो मोदी-मोदी का बखान करते नहीं थकते थे उनकी तिरछी नज़र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों पर है।
नरेंद्र मोदी ने बिहार के चुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। पैकेजए विकास के एजेंडे के सुर के बाद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की चाल चली थी। गाय के मांस और धर्म आधारित आरक्षण के खिलाफ जो सुर भाजपा और उसके नेताओं के बयानों और इश्तहारों में दिख रहे थे उनका असर चुनाव नतीजों पर पड़ा। मगर नरेंद्र मोदी या उनकी पार्टी के पक्ष में नहीं बल्कि उनके विरोध में। कर्नाटक से लेकर उत्तर प्रदेष तक भाजपा ने जिस साम्प्रदायिक मानसिकता का प्रदर्षन किया वह भारतीय संविधान और भारत जैसे बहुजातीय, बहुभाषी, बहुधर्मी और संस्कृतियों की विभिन्नता वाले देष के अनुरूप नहीं है।
भाजपा में नरेन्द्र मोदी को ही भाजपा मान लिया गया। उन्होंने भारतीय जनता को उम्मीदों का जो सपना सच होता दिखाया था वह भ्रम टूटता नज़र आ रहा है। पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक नरेन्द्र मोदी को ही भुनाने का काम भाजपा ने किया है। बिहार चुनाव ने आईना दिखा दिया है कि तमाम सत्ताविरोधी रूझान के बावजूद जनता ने नितीष कुमार और उनके महागठबंधन को स्वीकार किया।
यू.पी. की हलचल – उत्तर प्रदेश चुनाव पर भी असर डालेंगे बिहार चुनाव
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