जेबा हसन नवभारतटाइम्स में वरिष्ठ संवाददाता हैं। यह पिछले 11 सालों से पत्रकारिता कर रही हैं।
धंधा हुआ चैपट
मई में गुलाबी आॅटो प्रोजेक्ट आने के बाद जमील ने अपने आॅटो पर गुलाबी रंग करवाया था लेकिन चार दिन पहले उन्होंने आॅटो का गुलाबी रंग उतरवाकर पुराने रंग का करवा लिया। ‘गुलाबी आॅटो की वजह से धंधा डूबने की कगार पर है। आए दिन पुलिस रोक कर परेशान करती है। चालान के नाम पर वसूली करती है। पिंक आॅटो महिलाओं के नाम पर है तो पुरुष उसमें बैठते नहीं।’
न नया आॅटो न नया परमिट
परिवाहन विभाग और आॅटो यूनियन ने साथ मिलकर महिलाओं की सुविधा के लिए इस आॅटो प्रोजेक्ट की शुरूआत की थी। इसके लिए कोई नए परमिट नहीं दिए गए। विभाग ने पुराने आॅटो पर गुलाबी रंग कर उसे चलाने की बात कही थी। विजय कुमार कहते हैं, ‘हम लोगों को बोला गया पुराने आॅटो पर पेंट करवा लो। यह भी कहा गया था कि इस सेवा का उद्घाटन मुख्यमंत्री के हाथों से होगा। तीन महीने में उद्घाटन नहीं हुआ, इस दौरान हमारा धंधा चैपट हो गया। इसलिए मैंने अपनी गाड़ी का रंग दोबारा हरा करा लिया है।’ आलमबाग के रहने वाले बृजेश कहते हैं, ‘हमारे सामने दो दिक्कतें थीं एक तो पुलिस परेशान करती थी और दूसरे सवारी क¨ दिक्कत होती थी।’ इन्होंने भी दोबारा अपनी गाड़ी हरी करा ली।
हर वादा रहा अधूरा
आॅटो यूनियन के अध्यक्ष पकंज दीक्षित ने बताया कि धीरे-धीरे सभी पिंक आॅटो ड्राइवर अपनी गाड़ी का रंग बदल रहे हैं। मई में नब्बे प्रतिशत गुलाबी गाडि़यां थीं, अब पच्चीस प्रतिशत बची हैं। परिवाहन विभाग की ओर से कहा गया था कि इन आॅटो में जीपीआरएस सिस्टम लगेगा, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट पर अलग से पिंक आॅटो के लिए स्टैंड होगा, हर सीएनजी स्टेशन पर प्राथमिकता दी जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।