जि़ला बांदा, ब्लाॅक महुआ, गांव काज़ीपुर। यहां की लीला जिसकी उम्र 18 साल है, एक साल से जि़न्दगी और मौत के बीच जूझ रही है। उसके शरीर में बडे़-बड़े घाव हैं। एक साल से पेशाब की नली पड़ी है। गरीबी के कारण मां-बाप इलाज नहीं करा पा रहे हैं। लड़की की मां छोटे अधिकारी से लेकर बडे़ अधिकारी तक मदद की गुहार लगा चुकी है।
लीला की मां रन्नो ने बताया कि पिछले साल 19 सितम्बर को लीला घर की लिपाई-पुताई के लिए अपनी सहेलियों के साथ मिट्टी लेने के लिए गई थी। मिट्टी का टीला धंस जाने के कारण लीला समेत चार लडकियां मिट्टी की खदान में दब गई थीं। सभी को निकालने के लिए जि़ला प्रशासन इकट्ठा हुआ था। खदान से निकालने के लिए प्रशासन ने जेसीबी मशीन भी बुलवाई थी। बाकी तीन लड़कियों के मामूली चोटंे आई थीं पर लीला के दोनों पैरों की हड्डियां टूट गई थीं। कमर भी टूट गई थी। पसली की हड्डियां भी टूटी हैं। सरकारी अस्पताल में भर्ती किया तो डाॅक्टरों ने कानपुर के लिए रेफर कर दिया था। कानपुर में लीला दो माह तक भर्ती रही। ‘हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे हमने अपनी ज़मीन बेच कर ढाई लाख रूपए का इलाज करवा दिया है। जिसमें बस एक पैर का आॅपरेशन करवा पाए हैं। एक पैर और कमर पीठ की पसलियों का आॅपरेशन अभी बाकी है।’ बिस्तर में लेटे-लेटे लीला के जननांगों में घाव हो गए हैं।
क्या कहते हैं बडे़ अधिकारी?
डी.एम. सुरेश कुमार का कहना है अगर लीला के परिवार वाले आए होंगे तो हमको याद नहीं है। अगर वे दोबारा आएं तो हम लीला के इलाज में मदद कर सकते हैं।
गरीबी के कारण नहीं हो पा रहा है इलाज
लीला के मां-बाप के पास खाने तक को नहीं है। बीमार हालत में लीला की मां उसे छोड़ कर 13 किलोमीटर पैदल जंगल में चलकर लकड़ी लेने जाती है फिर उसको बाज़ार में 20-30 रूपए में बेचती है। तब उनके घर में चूल्हा जलता है। लीला की मां रन्नों ने बताया, ‘प्रधान से लेकर डी.एम. तक लीला के इलाज के लिए गुहार लगा चुकी हूं। किसी ने मदद का भरोसा नहीं दिया है।’
मौत से जूझ रही लीला
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