पिछले चार सालों में भारतीय राजनीति के बड़े नेताओं की हेट स्पीच और विभाजनकारी भाषा के प्रयोग में 500 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आई है। बमुश्किल ही कोई ऐसा दिन या सप्ताह गया हो जब कोई नेता, सांसद, विधायक, मंत्री यहां तक की मुख्यमंत्री ने कोई हेट स्पीच(नफरत फैलाने वाली बात) नहीं दी हो।
एक रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल के वर्षों में इसमें काफी तेजी देखी गई है। रिपोर्ट को उन बयानों का आधार मान कर बनाया गया है जिसमें सांप्रदायिक हिंसा, जातिवादी टिप्पणी, और हिंसा को बढ़ावा देने की बात देश के माननीय कर रहे हैं। इसमें महिलाओं के खिलाफ किए गए सेक्सिस्ट(शरीर से जुड़ी) टिप्पणियों को शामिल नहीं किया गया है।
तमाम डेटा और सबूतों के आधार पर यह पाया गया है कि मई 2014 से लेकर अबतक 124 बार 44 नेताओं ने हेट स्पीच दिया है। इसके मुकाबले यूपीए-2 के दौरान ऐसा सिर्फ 21 बार ही हुआ था। इस आधार पर मोदी सरकार के दौरान वीआईपी हेट स्पीच में 490 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्तमान के एनडीए सरकार के दौरान हेट स्पीच देने वालों में 90 प्रतिशत बीजेपी के नेता हैं।
एनडीए सरकार के दौरान 44 नेताओं ने हेट स्पीच दिया जिनमें से 34 यानी 77 प्रतिशत बीजेपी से संबंधित हैं। बाकी के 10 नेताओं में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और लालू यादव की आरजेडी के लोग शामिल हैं।
वहीं यूपीए-2 के दौरान कुल 21 नेताओं ने हेट स्पीच दिया था। जिसमें से 3 यानी मात्र 14 प्रतिशत सत्ताधारी गठबंधन यूपीए की मुख्य पार्टी कांग्रेस से संबंधित थे। जबकि विपक्षियों पार्टियों में बीजेपी इस मामले में आगे रही। यूपीए-2 के दौरान बीजेपी के 7 नेताओं ने हेट स्पीच दिया था। बाकी के 11 नफरत भरे बयान समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, शिव सेना और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेताओं ने दिया था।