जिला इलाहाबाद, हैदराबाद विश्वविद्यालय के रोहित वेमुला का मुद्दा अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर लगा राष्ट्रद्रोही का मामला पूरे देश में आग की तरह फैल गया।
वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ की नवनिर्वाचित अध्यक्ष ऋचा सिंह भी अपने एडमिशन को लेकर विवादों में घिर गई हैं।
आजादी के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पहली बार 28 साल की ऋचा सिंह ने 1 अक्टूबर 2015 में छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव जीता. 1927 में नेहरू परिवार की कुमारी एसके नेहरू यूनियन की अध्यक्ष चुनी गई थीं. उसके बाद से अब तक विश्वविद्यालय छात्रसंघ में महिलाओं की मौजूदगी नहीं देखी गई. जहां पर साधारण विद्यार्थियों का चुनाव लड़ना बेहद मुश्किल है, वहां पर ऋचा सिंह ने न सिर्फ चुनाव लड़ा बल्कि जीत हासिल करके ऐतिहासिक जीत भी कायम की. ऋचा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्लोबलाइजेशन एंड डेवलपमेंट में पी.एचडी. कर रही हैं।
ऋचा के अध्यक्ष बनने के बाद लगातार एबीवीपी द्वारा उन पर किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े होने और कॉलेज में राजनीति करने जैसे गलत आरोप लगाए जा रहे हैं। इस बारे में ऋचा का कहना है कि ‘‘मेरा किसी पार्टी से कोई संबंध नहीं है। मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में महिलाओं की सुरक्षा और मूलभूत चीजों को सुधारने के लिए चुनाव लड़ा है न कि राजनीति करने के लिए’’।
अध्यक्ष बनने के बाद ऋचा ने कॉलेज व्यवस्थाओं में काफी सुधार किया है। इस बारे में कॉलेज की एक छात्रा का कहना है कि ऋचा के आने के बाद से यहाँ का कैंटीन सुधर गया है। पहले खाने-पीने की और बैठने तक की उचित व्यवस्था नहीं थी लेकिन ऋचा ने इसे बिलकुल बदल दिया है। एमए के छात्र शिवम बताते हैं कि ऋचा के अध्यक्ष बनने के बाद से कॉलेज में बहुत काम हुआ है। आसपास के एरिया से आने वाले छात्रों के लिए पहली बार यहां बसें चलाने की व्यवस्था की जा रही है।
विश्वविद्यालय के छात्रसंघ यूनियन में पांच लोग हैं जिनमें चार एबीवीपी सदस्य हैं और एक ऋचा सिंह है। ऋचा बताती हैं कि ‘‘चुनाव के दौरान मुझ पर लगातार जातिवादी और लैंगिक हमले हुए। यह परिसर लड़कियों के लिए बेहद डरावना है। यही नहीं, मुझे पर नक्सलवाद के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। लेकिन मैं सत्य के साथ हूं विरोध तो होगा ही।
ऋचा ने बताया कि उन्होंने छात्रसंघ भवन में एक सेमिनार आयोजित किया था। जिसमें प्रशांत भूषण को बुलाया गया था। इस सेमिनार का एबीवीपी ने जबरदस्त विरोध किया। 20 जनवरी को एक दूसरे सेमिनार में मशहूर पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन को बुलाया, जिसका फिर एक बार एबीवीपी ने जम कर विरोध किया।
20 नवंबर को छात्रसंघ उद्घाटन का कार्यक्रम एबीवीपी ने आयोजित किया। इसके लिए भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित किया गया। योगी को छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह की असहमति के बावजूद बुलाया गया था। ऋचा सिंह के विरोध को जब नजरअंदाज किया गया तो ऋचा ने विश्वविद्यालय से लिखित में शिकायत की। ऋचा का तर्क था कि एक तो ‘मेरे अध्यक्ष होने के बावजूद योगी को बुलाने या आयोजन की निर्णय प्रक्रिया में मुझे शामिल नहीं किया गया। दूसरे, योगी लगातार धर्म और संस्कृति के नाम पर भड़काऊ बातें करते हैं। वे ऐसी शख्सियत नहीं हैं जो विश्वविद्यालय की गरिमा के अनुरूप हो। छात्रसंघ को संबोधित करने के लिए किसी अकादमिक शख्सियत को बुलाया जाना चाहिए।
इस विरोध के बावजूद जब योगी आदित्यनाथ का कार्यक्रम रद्द नहीं हुआ तो ऋचा अपने समर्थक छात्रों-छात्राओं के साथ अनशन पर बैठ गईं। इस विरोध का इलाहाबाद के बुद्धिजीवियों ने भी समर्थन किया और प्रशासन से अपील की कि योगी को विश्वविद्यालय में आने देना एक गलत परंपरा की शुरुआत होगी, इसे रोका जाए। अंततरू प्रशासन ने योगी का कार्यक्रम रद्द कर दिया।
ऋचा को लेकर चल रहे विवाद के बारे में वह कहती हैं कि मैंने एडमिशन नियमों के अनुसार लिया है। एडमिशन के दौरान मुझे बताया गया था कि रिजर्वेशन चार सीट से ज्यादा पर लागू होगा, केवल दो सीट पर नहीं। इस आधार पर मेरा एडमिशन बिलकुल सही है लेकिन एबीवीपी सदस्य गलत बता रहे हैं।
इस बारे में एबीवीपी के छात्र नेता सिद्धार्थ सिंह और विक्रांत सिंह ने बताया कि ‘ऋचा एक नक्सली, राष्ट्रद्रोही आरोपी कन्हैया का समर्थन करने के लिए दिल्ली गयीं यानि वह भी नक्सली हैं। ऋचा के एडमिशन को लेकर जाँच चल रही है क्योंकि जिस आधार को वो सही बता रहीं हैं वो यहाँ नौकरी पाने का आधार है। कुलपति महोदय कुछ दिन के लिए यहाँ नहीं थे। अभी आए हैं तो पांच सदस्यीय टीम बनायीं गई है। उम्मीद है कि दस दिन में रिजल्ट आ जाएगा।
इन सबके बारे में विश्वविद्यायल के पूर्व कुलपति और वर्तमान कला संकाय के डीन प्रो. ए. सत्यनारायन ने कहा है कि कुलपति महोदय ने जो टीम गठित की है वह जाँच करेगी, उसके बाद ही कोई फैसला हो पाएगा।
मैं सत्य के साथ हूं विरोध तो होगा हीः ऋचा सिंह
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