इस लेख को निशा सुसन ने लिखा है। निशा आनलाइन महिला पत्रकार लेडीज फिंगर चलाती हैं। यह लेख उनकी राय और अनुभव पर आधारित है। जब हम बच्चे होते हैं तो कई दोस्ती की कहानियां सुनते हैं जिन्हें जि़ंदगी में और मौत का सामना करने वाली स्थितियों में बनाया जाता है। नैतिक कहानियां ऐसे पात्रों से भरी पड़ी हैं जिन्हें खतरे के समय पता चलता है कि उनके असली दोस्त कौन हैं।
आजकल अगर हम और आप खतरे में हों, कई बार हमारे आस-पास दोस्त नहीं होते। बड़े शहर में कहीं खो जाना, घर से दूर किसी बुरे परिवार में विवाहित हो जाना, घर आते हुए बस से टकरा जाना – ये चीज़े हमारे साथ होने की ज़्यादा सम्भावना है, उन कहानियों में होने वाली घटनाओं से – जैसे भागा हुआ शेर, गुस्साई भिड़ का छत्ता या हिंसक घोड़ा मिलना। और ज़्यादातर हमें खुद ही अपने आपको खतरे से बचाना होता है जिसके बाद सुरक्षित होने पर हमें अपने आप पर ही दया आने लगती है। कुछ साल पहले मेरी एक दोस्त बस में चढ़ते हुए उससे गिर पड़ी।
बस उसकी जांघ पर चढ़ गई। उसके खून निकल रहा था। भीड़ जमा हो गई। मगर सब खड़े देखते रहे। बेहोश होते उसने सोचा कि वो इन अजनबियों को कुछ करने के लिए कहेगी। उसने एक आदमी को ऑटो रोकने के लिए कहा। जब ऑटो रुक गया तो उसने कुछ और आदमियों से कहकर अपने आपको ऑटो में रखवाया। जब वो अस्पताल पहुंची तो डॉक्टर उसकी टांग नहीं बचा पाए। मगर उन्होंने उसे बताया कि उसे आने में अगर कुछ मिनट की और देर हो जाती तो वो मर जाती। आज उसने नकली टांग लगाई है, उसकी नौकरी है, पति है और एक बच्चा भी है। आज उसके पास पीछे मुड़कर देखने का समय नहीं है। आज भी मैं अक्सर उस पल के बारे में सोचती हूं। वह लोगों में दया की स्वाभाविक प्रवृत्ति आने का इंतज़ार कर सकती थी।
मगर उसने ऐसा नहीं किया। पता नहीं मेरी दोस्त जानती है कि नहीं मगर इस बात पर शोध किया गया है कि आपातकालीन स्थिति में जितनी बड़ी संख्या में लोग खड़े देख रहे होते हैं उतनी ही कम सम्भावना होती है कि कोई मदद के लिए आगे आएगा। अगर मेरी दोस्त के साथ दुर्घटना हुई होती और सिर्फ दो ही लोगों ने उसको देखा होता तो इस चीज़ की ज़्यादा उम्मीद थी कि उसको सहायता मिल जाती। शोध से ये भी पता चला है कि लोग अपने जैसे लोगों की ज़्यादा मदद करते हैं और अगर खड़े लोग एक दूसरे को जानते हों तो मदद की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए अगर आप अजनबियों के समूह में अजनबी हंै तो मदद मिलने के लिए हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मगर खुशी भरे अंतों की तलाश में रहने वाली मैं ये ज़रूर कहूंगी कि मुझे इसी बात से हिम्मत मिलती है कि खून बहने से मरती मेरी दोस्त उस दिन कुछ लोगों को अपनी सहायता करने के लिए मजबूर कर पाई।
मुसीबत में मद्द मिलना नहीं आसान
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