जिला मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश। बोर्ड की परीक्षाएं करीब हैं। कहीं-कहीं प्रैक्टिकल भी शुरू हो चुके हैं। लेकिन जोला कैंप में रह रहे सभी बच्चों की पढ़ाई ठप है। ये लोग यहां 8 सितंबर 2013 से रह रहे हैं। मां-बाप हिंसाग्रस्त गांवों में परीक्षा देने के लिए जाने नहीं देंगे और नए स्कूलों में दाखिला मिल नहीं रहा। जे.सी.आई. (कुछ संस्थाओं का एक गुट) द्वारा किए सर्वे के अनुसार जोला कैंप में बोर्ड परीक्षाएं देने वाले करीब चैबीस बच्चे हैं।
‘खाने का ठिकाना नहीं, रहने का ठिकाना नहीं, लेकिन ये बच्ची अपनी किताबों में डूबी रहती है।’ शामली जिले के मस्तानखेड़ा गांव से आई शाहीना इस साल दसवीं की परीक्षा नहीं दे पाएगी। उसके चाचा जमशेद और कैंप में रह रहे दूसरे लोगों को भरोसा है कि अगर वह परीक्षा देती तो अच्छे अंकों से पास होती। जमशेद ने बताया कि शाहीना के दाखिले के लिए इसी गांव के जैन पार्स्वनाथ इंटर कालेज में टीचरों ने कहा कि अगले साल आना। लाक गांव के दसवीं के छात्र शबीर नेे भी जोला गांव के कई स्कूलों में दाखिला लेना चाहा पर नहीं हुआ। इसी गांव से आए दसवीं के छात्र मोहम्मद सादिक तैयारी में जुटा है। कोशिश कर रहा है कि यहीं दाखिला मिल जाए। लेकिन नहीं मिला तो कैसे भी हो गांव जाकर परीक्षा देंगे।
उधर, मुजफ्फरनगर के बेसिक शिक्षा अधिकारी के.के. सिंह से इस बारे में पूछे जाने पर उनका कहना है कि बोर्ड के बच्चों के प्रवेश पत्र उन तक पहुंचाने की कोशिश जारी है। जितना किया जा सकता है, हम कर रहे हैं। लोगों के लिए अभी बड़ा मुद्दा आवास और खाना है, पढ़ाई नहीं।