मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने आठ साल बाद मुंबई में डांस बार पर से रोक हटाई। डांस बार ऐसे होटलों को कहते हैं जहां खाने पीने के साथ लोग लड़कियों का नाच देखने जाते हैं। साल 2005 में मुंबई में इन पर रोक लगादी गई थी। इससे करीब साठ हज़ार महिलाएं बेरोज़गार हो गईं थीं। कारण बताया गया था की ये एक अश्लील काम है इसलिए इस पर रोक होनी चाहिए।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को गलत ठहराते हुए डांस बार पर से रोक हटा दी है। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर बड़े होटल में ऐसे नाच होने पर कोई रोक नहीं है तो फिर छोटे होटलों पर क्यों? क्या अमीर लोग ही ऐसे मनोरंजन के हकदार हैं? कोर्ट ने इसे अमीर और गरीब के बीच एक तरह का भेदभाव बताया है।
डांस बार में नाचने वाली कई महिलाएं उत्तर प्रदेश के बनारस और कानपुर जैसे शहरों से थीं। वो इन होटलों में नाचकर अपना घर चलाती थीं और बच्चों को स्कूल भेजती थीं। जब ये रोक 2005 में लगाई गई तब इन महिलाओं में से कई ने आत्महत्या कर ली थी। समाज में बार होटलों में नाचने वाली औरतों को खराब नज़रिए से देखा जाता है। ऐसे में इन महिलाओं को दूसरी जगह भी काम नहीं मिला था। सरकार ने इन महिलाओं की रोज़ी रोटी के लिए कुछ नहीं किया।
शगुफ्ता रफ़ीक, जो पहले डांस बार में नाचती थीं और अब हिंदी फिल्में (जैसे कि आशिकी 2) की कहानियां लिखती हैं, उनका कहना है कि अगर हिंदी फिल्म के आइटम नंबर करने में कोई दिक्कत नहीं तो डांस बार में नाचने में क्यों। आखिर दोनों काम एक ही तो हैं, दोनों में महिलाएं पैसे के लिए नाचती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि डांस बार में पैसा उस ही समय मिलता है, और फिल्मों के आइटम नंबर में ग्राहक पैसे देकर टाकीज़ के नाच देखते हंै। महाराष्ट्र सरकार इस फैसले से बिल्कुल सहमत नहीं है।
मुंबई में डांस बार से रोक हटाई
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