मुंबई, महाराष्ट्र। बृहन मुंबई नगर निगम ने शहर में मांस पर रोक लगा दी है। 10, 13, 17 और 18 सितंबर अगर किसी मुंबईवासी को मांस खाना है तो उसे खुद पर लगाम लगानी होगी। कुल मिलाकर यह रोक आठ दिनों की है। भले ही प्रशासन इसे चार दिन की रोक कह रहा हो।
दरअसल यह रोक जैन अल्पसंख्यक समुदाय के एक धार्मिक त्यौहार की वजह से लगाई गई है। जैन समुदाय ने अपने घार्मिक त्यौहार पर्यूशन के दौरान मांस पर रोक लगाने की मांग की थी। इस दौरान बृहन मुंबई नगर निगम के सारे बूचड़खाने बंद रहेंगे। दरअसल इस रोक के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि जैन समुदाय अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित है। और मीट के लिए जानवरों को काटना हिंसा है। इसी को ध्यान में रखते हुए मीट बाजार बंद किए गए हैं। अभी कुछ महीनों पहले मुंबई में न केवल गाय के मांस पर रोक लगाई गई थी बल्कि इससे बने सारे उत्पादों पर पाबंदी है।
इस पाबंदी को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। भारत में लोकतंत्र है। जहां अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के अधिकार सुरक्षित हैं। तो क्या एक खास तरह के खाने पर रोक लगाकर हम इसे खाने वाले समुदाय के हक को नहीं छीन रहे हैं ? यह एक तरह से खाने के चुनाव के अधिकार पर भी पाबंदी है। इसके अलावा मांस उद्योग में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों की एक बड़ी संख्या है। तो क्या सरकार इन आठ दिनों के लिए इन मजदूरों की दिहाड़ी का इंतजाम करेगी ?
मुंबई में गोश्त पर पाबंदी पर विवाद
पिछला लेख