क्या ख़ता है मेरी, ये बता दीजिए
फिर जो चाहे वो, मुझको सजा दीजिए…
उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर बाँदा के रहने वाले शमीम बाँदवी, एक शायर होने के साथ-साथ समाजवादी पाटी के जिला अध्यक्ष भी हैं। शेरो शायरी और गायकी से उत्तर प्रदेश की राजनीति तक कैसे पहुंचे शमीम जी? मन में ये सवाल लिए हम पहुंचे उनसे मिलने…
सर पर काली टोपी, गर्दन में साफा और आँखों में चश्मा लगाए शमीम जी को देखकर कहना मुश्किल है कि वे एक शायर हैं या राजनेता।
शमीम जी बाँदा में अपने छोटे से जिला ऑफिस से शायरी और राजनीति- दोनों में मसरूफ रहते हैं। इनसे राजनीति के सिलसिले में दिन भर में कई लोग मिलने को आते रहते हैं, इसके बावजूद भी वे शायरी के लिए समय निकाल ही लेते हैं।
शमीम जी बताते हैं कि उनका रिश्ता बाँदा से 1964 से है, जब उनके पिताजी यहां आ गए थे। उसके बाद उनका पूरा परिवार बाँदा आ गया। उनकी पूरी पढ़ाई बाँदा से ही हुई है। उन्हें शायरी का शौक 1980 में लगा, जिसका कारण उनकी अच्छी आवाज़ थी।
शमीम जी अपनी इस कला को ईश्वर और अपने गुरू प्रसिद्ध नज्म़ शायर हजरत कतील बाँदवी की देन मानते हैं। वह कहते हैं ‘गुरूजी ने मुझे शायरी, गीत को लिखना और कहना सिखाया।’ मोहल्लों में उर्दू अदब की छोटी-छोटी महफिले हुआ करती थीं। उनकी शायरी लोगों को इतनी पसंद आयी कि वे इसके बाद शमीम अहमद शमीम से शमीम बाँदवी बन गए।
1991 में जब मुलायम सिंह अतर्रा आए, तो शमीम जी ने नेताजी पर लिखा एक गीत सुनाया, जो उन्हें बहुत पसंद आया। उस गीत के कारण ही नेताजी ने इन्हें जिला अध्यक्ष बना दिया। पेश हैं उस गीत की कुछ लाइनें –
इंसाफ है तेरा मिस्ल जहाँगीर मुलायम
बदलेगा तू ही देश की तकदीर मुलायम
मिलिए, बाँदा के ‘शायर’ शमीम बाँदवी से…
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