हास्य और व्यंग्य के ज़रिए किसी गंभीर मुद्दे पर बहस छेड़ना ज़्यादा कठिन काम है। लेकिन यह तरीका ज़्यादा लोगों को जोड़ने में कामयाब साबित होता है। दहेज, भ्रूण हत्या जैसी गंभीर समस्या को कुछ इसी अंदाज में उठाया गया है ‘मास्टर साहेब’ धारावाहिक में। दूरदर्शन में 2 नवंबर से शुरु होने वाले मैथिली भाषा के इस धारावाहिक की केंद्रीय भूमिका में है, मास्टर साहेब का बेटा। पेश है खबर लहरिया की पत्रकार और मास्टर साहेब के बेटे की भूमिका निभाने वाले करण मिश्रा के बीच हुई विस्तृत बातचीत।
सवाल-आप मुंबई में पले बढ़े फिर बिहार के धारावाहिक में काम करने की कैसे सोची?
जवाब-मैं बिहार के दरभंगा जि़ले में पैदा हुआ इसलिए जब मेरे पास इस धारावाहिक का आॅफर आया तो झट से हां बोल दी। भले ही मेरा सारा समय मुंबई में बीता हो मगर मेरे भीतर का बिहारी करण मैंने आज भी ज़िंदा रखा है। (हंसते हुए उन्होंने कहा) फिर भी दिल है बिहारी।
सवाल-अभिनेता बाईचांस बन गए या अभिनेता ही बनना चाहते थे?
जवाब-एक्टिंग का शौक मुझे बचपन से ही था। हां, मैंने एनिमेशन में ग्रेजुएशन और मीडिया मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन ज़रूर किया। हम जिस परिवार से आते हैं वहां आज भी अभिनेता बनना करियर नहीं माना जाता। मगर मेरे भीतर के कलाकार ने कुछ और कुबूल ही नही किया। सो निकल पड़ा एक्टिंग की दुनिया में अपनी जगह तलाशने। काॅलेज के समय से मैं थिएटर से जुड़ा हूं।
सवाल-आपने अब तक कौन-कौन से धारावाहिक और फिल्में की हैं?
जवाब-मेरा पहला टीवी धारावाहिक था-जिस आंगन न हो बिटिया। 2011 में यह धारावाहिक प्रसारित हुआ था। फिर 2012 में एक फिल्म आई थी-हांटेड हाउस मैंने उसमें काम किया। एक बंगाली धारावाहिक में भी काम किया। 2013-14 में आरक्षण के मुद्दे पर मैं फिल्म भी डायरेक्ट कर रहा था। काफी शूटिंग भी हो चुकी थी। मगर विवादों के चलते बीच में ही छोड़ना पड़ा। बी.एस.एन.एल. और इंडियन ऑयल जैसी कंपनियों के उत्पादों के लिए विज्ञापन भी किए।
सवाल-इस धारावाहिक के बारे में कुछ बताइए।
जवाब-मास्टर साहेब एक काॅमेडी सीरियल है। इसमें महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा से जुड़े कई मुद्दों को उठाया गया है। दहेज प्रथाएं, भ्रूण हत्याएं, लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव। इसमें मास्टर साहेब का बेटा यानी मैं मज़ेदार ढंग से गंभीर सवाल उठाता हूं। जैसे किसी के घर लड़की पैदा हुई घर के लोग उदास हो गए तो उनसे मैं पूछता हूं कि इतने खुशी के मौके में आप सब उदास क्यों हैं? एक लड़की से शादी करना चाहता हूं, यहां भी दहेज की बात आती है। मैं फिर सवाल उठाता हूं। देखिए लोगों के दिल तक पहुंचना है तो भाषण या रो धोकर नहीं पहुंचा जा सकता। आपको हल्के-फुल्के ढंग से गंभीर बातें कहनी पड़ेंगी। अगर भाषण से पहुंचा जा सकता तो नेता जनता की नज़रों में सबसे बड़े हीरो होते।
सवाल-आपने बताया कि आप एक फिल्म भी डायरेक्ट कर रहे थे मगर विवादों के चलते वह बीच में ही बंद करनी पड़ी। तो आगे क्या आप किसी फिल्म या सीरियल को डायरेक्ट करने की सोच रहे हैं?
जवाब-फिलहाल तो अभी सारा ध्यान एक्टिंग पर ही है। मगर हां भगवती नाम से एक किताब ज़रूर लिख रहा हूं। 2016 में यह आपके सामने होगी। यह किताब औरतों पर ही केंद्रित है। उनके संघर्ष और उनकी कहानियां इसमें होंगी। क्या पता इस किताब से ही कोई सीरियल या फिल्म निकल आए। मगर पहले यह किताब बाज़ार में आ जाए। फिर सोचेंगे।
सवाल-परदा छोटा हो या बड़ा। यहां पर जगह बनाने के लिए नए कलाकारों को कितना संघर्ष करना पड़ता है?
जवाब-देखिए संघर्ष तो हर फील्ड में है। मगर आपमें हुनर है, चाहत है तो रास्ते बन ही जाते हैं। मगर इस फील्ड में आने के लिए आपमें कुछ खास होना ज़रूरी है। इसलिए यहां आने से पहले खुद को खूब परखिए। थिएटर देखिए, बारीकियां समझिए फिर ही इस तरफ आना चाहिए। हां, एक बात और, अक्सर लोग किसी बड़ी फिल्म में बड़ी भूमिका के इंतज़ार में बैठे रहते हैं। मुझे लगता है कि आपको जहां भी जो काम मिले पहले छोटे या बड़े परदे पर दिखाना ज़रूरी है। कई बड़े कलाकार छोटे परदे से निकले हैं। शाहरुख खान सबसे बड़ा उदाहरण हैं। जनवरी से मैं इलाहाबाद की पृष्ठभूमि पर बनने वाले एक धारावाहिक युवा में भी नज़र आऊंगा।