मानसिक रोगियों को सामुदायिक माहौल में बेहतर इलाज उपलब्ध कराने तथा आत्महत्या के प्रयास को गंभीर अवसाद की श्रेणी में डालते हुए उसे अपराध नहीं मानने की व्यवस्था वाले ‘मानसिक स्वास्थ्य देख रेख विधेयक 2016’ को 27 मार्च के दिन, संसद की मंजूरी मिल गई।
लोकसभा ने इस विधेयक को आज ध्वनिमत से पारित कर दिया, जबकि राज्यसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। विधेयक में मानसिक रोगियो की परिभाषा और उन्हे अब तक उपलब्ध उपचार की व्यवस्था में आमूल बदलाव के प्रावधान किए गए है। उन्हें समानता, निजता और इच्छा अनुरूप इलाज पाने की पूरी छूट दी गई है। इसके साथ ही आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से हटाने का प्रावधान किया गया है।
इसके साथ ही मानिसक रूप से अस्वस्थ माताओं से 3 वर्ष तक की आयु के शिशुओं को अलग करने के लिए ठोस कारण बताने का प्रावधान जोड़ा गया है। इसमें मानसिक रोगियों की नसबंदी तथा आपात स्थितियों में उनका इलाज बिजली के झटकों से करने पर रोक की व्यवस्था है। बिना रोगी की इच्छा के उस पर किसी तरह का इलाज जबरन नहीं थोपा जा सकेगा।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने विधेयक पर सदन में हुई चर्चा का जवाब देते हुए आज कहा कि अब देश में मानसिक रोगियों को उपेक्षा और सामाजिक दंश का शिकार नहीं होना पड़ेगा, उनका इलाज अलग थलग बंद कमरों में करने की बजाए सामुदायिक माहौल में करने की व्यवस्था होगी। नड्डा ने कहा कि विधेयक के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कानूनी व्यवस्था की गई है, जिसका उल्लंघन करने वालों के लिए जेल और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।