कलाकार – नवाजुद्दीन सिद्दीकि, राधिका आप्टे, निर्देशक – केतन मेहता
जब भी आप कोई फिल्म देखकर सिनेमा हाॅल से बाहर निकलते हैं तो या तो आप मुस्कुरा रहे होते हैं या तो आप रो रहे होते है या तो आप फिल्म में किसी को कोस रहे होते हैं। लेकिन जब आप यह फिल्म देखकर निकलेंगे तो आप की जुबान पर नवाजुद्दीन सिद्दिकी के यही शब्द होंगे- किसी भी काम कम लिए भगवान के भरोसे मत रहिए। क्या पता भगवान भी आपके भरोसे पर ही बैठा हो।
यह फिल्म शुरू होती है दशरथ मांझी यानी नवाजुद्दीन सिद्दिकी और राधिका आप्टे से। बिहार के गया जि़्ाले के गहलोर गावं और वज़ीरगंज ब्लाक से एक पहाड़ जाता है। एक दिन दशरथ मांझी की पत्नी इसी पहाड़ से गिर कर मर जाती हैं। बस फिर दशरथ मांझी छेनी हथौड़ा लेकर निकल पड़ता है उस पहाड़ को काटने के लिए। पहाड़ को काटते समय दशरथ मांझी पहाड़ से बातें करता है, उससे लड़ता भी है, गाली भी देता है और गले भी लगाता है। फिल्म में एक पत्रकार भी है जो दशरथ मांझी की लड़ाई को देखता है और रिपोर्ट भी करता है। एक दिन मांझी उससे कहता है कि तुम अपना अखबार क्यूं नहीं निकालते तब पत्रकार कहता है कि इतना आसान नहीं है अखबार निकालना। मांझी कहता है क्या पहाड़ तोड़ने से भी कठिन काम है अखबार निकालना।
प्रेरणा देने वाली कहानी, कमाल का अभिनय, समय की पहचान और बेहतरीन निर्देशन इस फिल्म को एक कामयाब फिल्म बनाते हैं। भले ही यह फिल्म उतनी कमाई ना कर पाए लेकिन यह फिल्म सालों तक याद की जाएगी।