क्या आप जानते हैं कि पेट्रोल डीज़ल जैसे तेल पेड़ पर भी उगते हैं? जो पेट्रोल डीज़ल आम तौर पर इस्तेमाल होता है वो धरती के नीचे पाया जाता है और उसे बनने में हज़ारों साल लगते हैं। ये तेल सीमित मात्रा में है और जिस गति से इसका इस्तेमाल आज के ज़माने में हो रहा है उसके खतम होने का डर है। ये तेल प्रदूषण फैलता है। इसलिए ऐसे तेल की सख्त जरूरत है जो आसानी से बन जाए, जो सीमित ना हो और जो प्रदूषण न फैलाए। ऐसे ही तेल को खोज निकाला है और उसे आज बायोडीसल कहते हंै। बायो डीसल फल-फूल, जानवर के चरबी से बन सकता है। जैसे सरसों और सूरजमुखी जैसे तेल वाले पौधों से बन सकता है।
एसा ही एक पौधा है जेट्रोफा। जेट्रोफा पौधे में जो फल उगता है उसमें चालीस प्रतिशत तेल होता है और उससे बायोडीसल बन सकता है। ऐसे ही पेड़ महोबा में उगाए जा रहे हैं और उन्हें महोबा के लोग डीज़ल पेड़ बुला रहे हैं।
महोबा जिले के कबरई ब्लाक के पसवारा गांव के ओम प्रकाश बताते हैं कि हमने पन्द्रह बीस पेड़ लगाए हंै। ऐसे चरखारी ब्लाक के गांव अकटौंहा की प्रेमवती बताती हैं ये बहुत ज़हरीला होता है। हमारे यहां डीज़ल के पेड़ों को तालाब के किनारे ग्राम प्रधान ने लगवाया है। वे बताती हैं कि इसका फल आंवले के बराबर का होता है जो कच्चे में हरा और पकने में पीला हो जाता है। इसके पके हुए फलों से बीज निकाल कर धूप में सुखाते हंै। इन बीजों को मण्डी के ठेकेदार ले जाते हैं और मशीन में पेराई करके तेल निकाल कर डीज़ल तैयार किया जाता है। लेकिन बायो डीज़ल और डीज़ल से महंगा है और इंजन के लिए उतना अच्छा नहीं है क्योंकि बायो डीज़ल बहुत कम मात्रा में तेल होता है।
महोबा में शुरू हुई डीजल की पैदावारी
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