अमृता कुमारी बिहार के समस्तीपुर जि़ले में स्वतंत्र पत्रकार हैं।पिछले करीब अट्ठारह सालों से पत्रकारिता कर रहीं हैं। राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों में गंभीर रिपोर्टिंग कर चुकी हैंं। यह विचार उनके हैं।
जिले में विधानसभा चुनाव की वोटिंग खत्म हो चुकी हैं। अब लोग तैयारियों में लग चुके है भारतीय संस्कृतिए सभ्यता और पारम्परिक पूजा अर्चना में। दुर्गा पूजाए दीपोत्सव यानि दीवाली और महा पर्व छठ पूजा की तैयारियां। घरों में साफ सफाई का माहौलए पुरानी चीजों की जगह नई चीजों की खरीदारी की लिस्ट बन रही है तो भला बाजार पीछे कैसे रह सकता है। ग्राहकों के लिए बाजार भी सज कर तैयार हैं। घर घर में लोग उत्साहित है। मांएं अपने घर से बाहर दूसरे जिलों या राज्यों या फिर दूसरे देशों में रह रहे बेटे बेटियों के आने इंतजार कर रहीं हैं तो बच्चे नए उपहार आस लगाए हैं। घरों में घरौंदे भी बनेंगे। कुछ समय के लिए ही सही मगर एकल हो चुके परिवार संयुक्त परिवार में बदलेंगे। जब विदेशों में रह रहा बेटा छठ पर्व पर अपने घर गांव में आता है। एक अलग वातावरण बन जाता है। मिटटी के दिएए धूपदानीए चूल्हे आज भी घरों में दिखाई पड़ जाते हैं। कुछ बदला है तो इनका दाम। माटी के बने यह दीए आज माटी मोल नहीं बल्कि अलग अलग महंगे दामों में मिलते हैं। भले ही कितना बदलाव आ गया हो लेकिन दीपावली में मिट्टी के दिए तो घर पर जरूर आते हैं।
बाजार अपनी और ग्राहकों को आकर्शित करने के लिय रंगीन बत्तियों से सजी हैं। डिजाइनर कपड़े। बर्तन और घरों को सजाने की कितनी ही खूबसूरत चीजे जो अपनी और खिचती हैंए लुभाती हैंए खरीदने के लिये विवश करती हैं। ऐसे में परिवार के समझदार लोगों को घर की खरीदारी का जिम्मा सौंपा गया है। गांव में रहने वासी नीलम सिंह ने बताया कि बाजार तो तरह तरह से लुभाता ही है। मगर मैं तो अपनी जरुरतों और जेब के आधार पर लिस्ट बनाकर खरीददारी करती हूं।