अब हर हफ्ते खबर लहरिया में पढ़ें महिला पत्रकारों की कुछ खास खबरें। राजनीति, विकास, संस्कृति, खेल आदि की ये खबरें देश के कोने-कोने से, छोटे-बड़े शहरों और अलग-अलग गांवों से हैं। इस हफ्ते, पढ़ें रिज़वाना तबस्सुम की खबर बनारस से। रिज़वाना ने इसी साल पत्रकारिता में एम.ए. की पढ़ाई पूरी की और इस समय एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रही हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में बनारस की संसदीय सीट खूब चर्चा में रही। भारतीय जनता पार्टी का मुख्य चेहरा रहे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहीं से चुनाव जीता। उन्होंने बनारस की पहचान माने जाने वाले बुनकरों से उनके अच्छे दिन लाने का वादा किया था। बनारसी साड़ी के लिए भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की योजना बनाने का भरोसा दिया था। मगर अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया।
हाथों के खास हुनर के मालिक हाथ का काम छोड़कर पावरलूम मशीन की तरफ भाग रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बुनकरों की संख्या छह से सात लाख है। इनमें से करीब चार लाख बुनकर मऊ, आज़मगढ़, मुबारकपुर और बनारस के आसपास के ही हैं। इनमें से ज़्यादातर पावरलूम बुनकर हंै। बनारस के चैकाघाट स्थित बुनकर आफिस के मोहम्मद यासीन ने बताया कि बीस साल पहले पचानवे प्रतिशत लोग हथकरघा से जुड़े होते थे। लेकिन आज सत्तर हज़ार की आबादी में चार सौ से भी कम लोग हथकरघा बुनकर हैं। असली बनारसी साड़ी हथकरघा बुनकर ही बनाते हैं। मशीन से बनी बनारसी साड़ी उसका मुकाबला नहीं कर सकती। लोहता के अलावल और शहबान ने बताया कि इस साड़ी को बनाने में लागत और मेहनत दोनों ज़्यादा हैं। मगर बनारस के बाज़ार में इसकी कीमत मिलना बहुत कठिन है। हथकरघा बुनकर लगातार घाटे में जाने के कारण कजऱ् में दबा जा रहा है।
27 जून 2014 को टेक्सटाइल सेक्टर की अपनी पहली समीक्षा बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने अधिकारियों से हथकरघा को फैशन से जोड़ने को कहा। मोदी ने कहा कि ऐसा करने से बुनकरों को पहचान और पैसा, दोनों मिलेगा। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। नंवबर 2014 में बनारस के बड़ा लालापुर क्षेत्र में प्रधानमंत्री ने हस्तशिल्प कला केन्द्र और व्यापार केन्द्र की नींव रखी थी। लेकिन इस पर भी काम शुरू नहीं हुआ। हर बुनकर को यहां अच्छे दिन आने का इंतज़ार है।