तीन तलाक विधेयक लोकसभा से पास होकर अभी राज्यसभा में अटका हुआ है। लेकिन सरकार को महिला उत्थान के लिए पाँच विषयों पर काम करने की जरूरत है। पांच आपराधिक कानून हैं, जिन्हें 2015 में सरकार की एक समिति की ओर से बनाया गया था, जिसकी आज अनदेखी की जा रही है। ये पांच कानून हैं-वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाना, पति व उनके रिश्तेदारों की ओर से की गई क्रूरता की परिभाषा स्पष्ट करना, दहेज विरोधी कानून की कमी को दूर करना, शादी के लिए महिला– पुरुष की एक समान उम्र तय करना और शादी के मामले में दखल देने वाली खाप पंचायतों को गैरकानूनी करार देना। 2013 में गठित एक समिति ने महिलाओं और आपराधिक कानून के संबंध में अपनी समीक्षा में कई सिफारिशें कीं, जो सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ तक नहीं, बल्कि सभी महिलाओं को कानून और न्याय प्रणाली से मदद करने को लेकर कुछ ही सिफारिशे हैं। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाना : मौजूदा कानून में वैवाहिक दुष्कर्म के शिकार के लिए कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अलग रखा गया है। सर्वोच्च न्यायालय की वकील करुणा नंदी ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाने की वकालत की है। उनका कहना है कि वैवाहिक दुष्कर्म के मामले पति व उनके रिश्तेदारों की क्रूरता से संबंधित आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दायर किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, 31% विवाहित महिलाओं को शारीरिक या मानसिक रूप से पति की प्रताड़ना का शिकार बताया गया है, जिसमें सबसे ज्यादा शारीरिक हिंसा 27 % है। दहेज रोधी कानून में संशोधन : वर्तमान में दहेज निरोधक कानून 1961 के तहत दहेत देने या लेने पर रोक है। इस कानून को तोड़ने वालों के लिए पांच साल की सजा का प्रावधान है। हालांकि इसकी परिभाषा को व्यापक बनाने की बात कही गई है। स्त्रीधन को दहेज की परिभाषा में शामिल करने की सिफारिश के साथ ही स्त्रीधन का वारिश पति को बनाए जाने वाले प्रावधान को हटाने की मांग भी की गयी है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2005 से 2015 के दौरा 88,467 महिलाओं की मौत दहेज से हुई, शादी की समान न्यूनतम उम्र : बाल विवाह निषेध कानून 2006 के तहत बाल विवाह को गैर-कानूनी करार दिया गया है और लड़के के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़की के लिए 18 साल रखी गई है। समिति ने दोनों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र एक समान रखने की बात कही है। ऑनर किलिंग के फतवे जारी करने वाले खाप को अपराध की श्रेणी में लाना : महिलाओं का असमान आर्थिक, सामाजिक और राजनीति स्थिति के कारण है, महिलाओं के बारे में रूढ़िवादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2016 के बीच ऑनर किलिंग के मामलों में दोगुना इजाफा हुआ। वर्ष 2015 में ऑनर किलिंग के 192 मामले दर्ज किए गए। ये ऐसे पाँच मद्दे हैं जिन काम होना जरूरी है।
लेख साभार: इंडियास्पेंड