महाराष्ट्र। महाराष्ट्र राज्य इस समय पिछले चालीस सालों के सबसे गंभीर सूखे से जूझ रहा है। राज्य के सोलह जिलों में बहुत कम बारिश के कारण लगभग दो करोड़ की आबादी पर असर पड़ा है। तीन महीनों से बनी इस स्थिति पर किसी भी सरकारी कदम का असर नहीं हुआ है।
- ओस्मानाबाद जिले में पानी के लिए लोगों को तीस किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। नल में पानी महीने में मुश्किल से दो बार आता है। इसके बाद लोगों को पानी के टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है। टैंकर प्राइवेट होते हैं और पांच सौ लीटर पानी की कीमत सत्तर रुपए है। ऐसे सैंकड़ो टैंकर आते हैं पर ओस्मानाबाद और जलना जिले की चालीस लाख की आबादी के लिए पानी पूरा नहीं पड़ता।
- बीड़ जिले में किसानों ने गन्ने की खेती के लिए सरकारी बैंक से कर्जों लिया था। सिंचाई के लिए मौजूद तालाब पूरा सूख गया। किसानों की फसलें भी बेकार हो गईं। अब लगभग डेढ़ सौ किसान मनरेगा में मजदूरी करके किसी तरह काम चला रहे हैं। जिले में इस साल केवल बाइस प्रतिशत उपजाऊ ज़मीन में खेती हुई है।
- सूखे से जानवरों पर भी असर पड़ा है। लोग अपनी गाय और बकरियां बेच रहे हैं। सरकार ने कुछ गांवों में कैम्प लगाए हैं जहां बड़े जानवरों को पंद्रह किलो और छोटे जानवरों को सात किलो चारा रोज़ाना मिलता है। लेकिन किसानों का कहना है कि ये ज़रूरत का आधा ही है और जानवरों को पूरा नहीं पड़ता।
जहां सरकार का कहना है कि सूखे का कारण कम बारिश ही है, वहीं स्थिति कुछ और ही नज़र आती है। जलना जिले में स्टील की फैक्टरियां बड़ी मात्रा में पानी इस्तेमाल करती आई हैं। जिन इलाकों में सूखा पड़ गया है उन्हीं से बिजली के काम में पानी लिया गया है। सिंचाई परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। राजनैतिक खेलों में उलझे ये बांध सूखे के समय हज़ारों लोगों की मदद कर सकते थे।