बनारस में त इ समय त एतना ज्यादा महंगाई हव कि आम जनता के घरे से निकलब मुश्किल हो गएल हव। आटो के किराया एतना बढ़ गएल हव कि लोग कहीं आवे जाय खातिर के सोचत हयन। आटो किराया के साथ साथ सब्जी, गैस समेत आउर कई सामान के दाम बढ़ गएल हव जेसे कि आम जनता एकदम परेशान हो जात हव। अगर उ लोग सौ रूपिया या पचास रूपिया कमइयन त उ खाली सब्जी आउर किराया के खर्च हो जात हव। दिन पर दिन एही हाल रही त आम जनता खाए आउर घर से निकले खातिर सोची। अगर महगांई के एही हाल रही त गावं के जनता कइसे खाई नहाई। आउर उ लोग कइसे अपने लइकन के पढ़इयन लिखइयन। महगांई त जैसे आसमान छूवत बा। प्रशासन इ बात पर तनिको धियान नाहीं देत हव। नौकरी करे वालन त चाहे भी जइसे कर के आपन गुजारा कर लेत हयन लेकिन गावं के आउर गरीब जनता के का होई। उ लोग कइसे आपन घर इ महंगाई में संभलियन। अगर जे रोज गांव से दूर साधन करके कमा जात हयन त उ त इह सोचीयन कि अगर हम अपने गावं में रह के कमाइब त उ किराया के पइसा बची। जवन कि हमरे घर परिवार आउर साग सब्जी खातिर काम दे देई
महगांई छूवत आसमान
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