बुन्देलखंड। कभी एक समय होता था जब बच्चे उंगलियों पर गिनते रहते थे कि होली आने में अभी कितने दिन बाकि है। बात सिर्फ होली की नहीं है कोई भी त्यौहार हो हम सबको इन्तजार होता था कि त्यौहार जल्दी से आए, अच्छी-अच्छी चीजें बनाई जाएं। औरतें होली की तैयारी तो महीना भर पहले से करती थीं। घर में पापड़ बनाती थी। होली के दिन खूब मस्ती होती थी।
अब जैसे-जैसे वक्त बदल रहा है सब कुछ बदल रहा है। मंहगाई बढ़ गई है। इस बार बुन्देलखण्ड में एक बार फिर से सूखा पड़ा है जिसका असर वहां के किसानों और उनके जि़न्दगी पर बहुत असर छोड़ रहा है। खबर लहरिया के पत्रकार ने इस बार होली को लेकर गांव के कुछ लोगों से, कुछ बच्चों से और कुछ दुकानदारों से बात की। आइए जानते हैं कि कैसे बीता उनका होली।
नहीं बनाया जा रहा है पापड़ कर्वी के सोनेपुर गांव की सविता बताती है कि इस बार वो पापड़ और चिप्स नहीं बना रहीं हैं। यहां पर इतना सुखा पड़ा है कि खेती खराब हो गया है खाने का सामान हो ही नहीं पाया है तो चिप्स कैसे बनाएं। सविता बताती हैं ऐसा नहीं कि होली नहीं मनेगा। होली तो मनाएंगे लेकिन जो हर बार ज्यादा सामान से बनाते थे वो कम होगा। चिप्स बाजार से खरीद कर लायेंगे। यहीं की बिन्दु बताती हैं कि जो पापड़ हम घर में बनाते हैं उसमें अपने हिसाब से नमक मिर्च डालते हैं और वो खाने में भी अच्छा लगता है। लेकिन जो बाजार से आता है वो उतना अच्छा नहीं होता है। लेकिन महंगाई इतना है कि हम घर में पापड़ नहीं बना पाए है। बाजार से कुछ खरीद लाएंगे।
बिक रहा है सामान धीरे-धीरे कर्वी के शंकरपुर के बाजार के टोपी बेचने वाले श्यामू बताते हैं कि हर बार तो महीना भर पहले से ही लोग टोपी के आर्डर देने लगते थे लेकिन इस बार तो अभी तक पूरा सामान हम ही नहीं लाए है लेकिन फिर भी मंहगाई और यहां पर हुए सूखे के हिसाब से काफी कुछ बेच ले रहे हैं। पिचकारी बेचने वाले राजन बताते हैं कि सामान तो बिक रहा है लेकिन जितना उम्मीद है उतना नहीं।बच्चों में है खुशी
पांच साल के राहुल बताते हैं कि होली आ रही है इसलिए हम जाकर के नए कपड़े ले आए हैं। और पिचकारी भी लाए हैं। सीमा बताती है कि मेरे मम्मी-पापा भी मेरे लिए नए कपड़े और बहुत सामान ले आए हैं।
भले ही मंहगाई हो सूखा पड़ा हो लेकिन फिर भी लोग हर कोशिश कर रहे हैं कि होली के रंग में रंग जाएं।