जहां एक ओर नरेंद्र मोदी सरकार मनरेगा पर सवाल उठाकर उसकी पहुंच को सीमित करने की बात कर रही है, वहीं यह सामने आया है कि दरअसल मनरेगा को लागू करने में कई कमियां रह गई हैं। चैकाने वाली बात ये है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2015 के बीच ग्रामीण परिवारों को मनरेगा के तहत औसतन उन्तालिस दिन काम मिला जबकि नियम में सौ दिन का रोज़्ागार है।
मनरेगा योजना 2005 से 2006 में लागू हुई थी। अब दस साल बाद योजना की सफलता पर ये सरकार सवाल तो उठा रही है पर ये बात भी स्पष्ट है कि इस सरकार के राज में मनरेगा में दस सालों में सबसे कम काम हुआ है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार बीते साल मनरेगा की इस बुरी स्थिति के कई कारण हैं। लेकिन उन्होंने सबसे बड़ा कारण बजट की कमी, बजट पास करने में देरी और प्लानिंग की कमी को बताया है। यही कारण है कि गांव स्तर पर लोगों के पास मनरेगा में करने के लिए कोई काम ही नहीं था।
मनरेगा में सिर्फ उन्तालिस दिन काम मिला
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