महात्मा गांधी रोजगार गारंटी यानी मनरेगा योजना पर मनरेगा उपायुक्त नीरजा गुप्ता से खबर लहरिया ने किए कुछ खास सवाल
दस साल हो गए मरनेगा शुरू हुए। क्या यह योजना अपने लक्ष्य को पूरा कर पाई है?
यह तो नहीं कह सकते कि पूरी तरह से लक्ष्य तक हम पहुंच पाए हैं लेकिन मनरेगा ने मजदूरी का एक मानक तो तय किया है। अब मनरेगा के बाहर भी लोग कम से कम मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी के बराबर पैसा मांगते हैं। लोगों को देना भी पड़ता है।
बजट सही तरह से खर्च हो रहा है, इसकी निगरानी कैसे होती है? क्योंकि लगातार कई घोटाले सामने आ रहे हैं।
घोटाले तो हर विभाग में होते रहें है, पर मनरेगा के घोटाले ज्यादा ही उजागर हुए हैं। अब देखिए न पचास लाख के बजट में अगर उनचास लाख का काम हुआ है और एक लाख का घोटाला तो लोग घोटाला पहले देखेंगे। उनचास लाख के काम की चर्चा ही नहीं करेंगे। सामने आई गड़बडि़यों के बाद बजट पास करने के तरीके को बदल दिया गया है। पहले काम की सूची ग्राम पंचायत से आ जाती थी उसके अनुसार बजट पास हो जाता था। लेकिन अब काम होने के बाद उसे देखने के बाद बजट पास होता है।
जिन पंचायतों में काम बंद करवा दिया गया है, वहां पर मजदूरी के लिए दूसरी क्या कोई व्यवस्था की गई है?
नीतियां सरकार बनाती है और अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
तो फिर क्या हम मान लें कि सरकार के पास रोजगार की कोई गारंटी नहीं?
इसका जवाब सरकार देगी। हम तो उनके निर्देशों पर काम करते हैं।
किस ग्राम पंचायत में कौन सा काम होगा यह कैसे तय होता है?
इसके लिए गांव स्तर से जानकारी ली जाती है। सूची बनती है। सूची में से प्राथमिकता के आधार पर तय होता है कि पहले क्या काम हो। इसका प्रस्ताव जिले में भेजा जाता है। काम हुआ है या नहीं इसकी जांच के बाद ही अब बजट पास होता है।