महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) में सरकार करोड़न रूपइया खर्च करत हे कि गांव को आदमी पलायन न करके गांव में ही काम करें। पे गांव को आदमी पलायन करें खा मजबूर हो जात हे। मनरेगा के तहत काम नई मिलत हे। अगर काम मिलत भी हे तो मजदूरी को रूपइया नई मिलत हे। एसी बढ़त मंहगाई में 140 रूपइया मजदूरी हें ऊमें भी काम नई मिलत आय। हम बात करत हे चरखारी ब्लाक के सालट गांव की। एते के लगभग पचासन आदमियन ने मनरेगा के तहत रमना जंगल में काम करो हतो। जोन वन विभाग वाले नगद रूपइया देय खा कहत हते, पे अभे तक एकऊ रूपइया नई मिलो आय। जीखी चेक बनी हे ऊ भी गलत बनाई हे जीसे चेक नई भंजत हे।
सवाल जा उठत हे कि जभे नियम बनो हे तो ऊखे लाभ काय नई मिलत हे? आखिर मजदूर आदमियन के साथे एसो काय करो जात हे। एसई कबरई ब्लाक के पसवारा गांव के लगभग हजारन आदमी आपन परिवार लेके बाहर ईटा पाथन गये हें। जभे की जगह-जगह र्बोडन ओर दिवारन में नारा लिखें रहत हे कि-
“गांव-गांव में काम मिलेगा, काम के बदले दाम मिलेगा” पे दाम तो दूर हे। न तो काम मिलत हे ओर न दाम मिलत हे। का होत हे मनरेगा जेसी योजना लागू करे जभे ऊ योजना को लाभ आदमियन तक नई पोहोच आय। सरकार इत्तो बजट भेजत भेत हे ओर आदमी भी बाहर कमायें जात हे? सरकार खा ई बात खा गम्भीरता से सोचे खा चाही ओर अपने अधिकारियन से जबाब लेय खा चाही?
मनरेगा ठप्प पलायन शुरू
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