महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना अपने दसवें साल में प्रवेश कर चुकी है लेकिन तथ्य कहते हैं कि इस योजना का प्रदर्शन दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है।
हाल ही में महोबा के गांव बिलरही, ब्लॉक कबरई में मनरेगा का सच देखने को मिला। इस गांव में मनरेगा के अंतर्गत कुएं और तालाब की खुदाई के लिए जनवरी और फरवरी माह में मनरेगा का कार्य शुरू किया गया था। गांव वालों के अनुसार यहां दोनों माह मिला कर 30 दिन काम हुआ, जिसमें 2 कुएं बनवाये गयें लेकिन पैसा एक रुपया भी नहीं मिला। यह गांव सूखाग्रस्त गांव है ,जहां उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में दौरा किया था। मुख्यमंत्री ने दौरे के दौरान गांव वालो से खाद्दान पैकट, सूखा राहत चैक और मनरेगा के कार्य दिनों के बारे में बातचीत की थी। लेकिन मुख्यमंत्री के सामने हकीकत आने से रह गई।
दरअसल, मनरेगा के 30 दिनों के काम के बाद काम करने वाले मजदूरों को कोई मजदूरी नहीं दी गई। जबकि प्रधानपति हरप्रसाद का कहना है कि “30 दिन के काम में 15 दिन की मजदूरी दी जा चुकी हैं। अगली मजदूरी मई तक मिल जाएगी”। इनके सबूत के तौर पर प्रधानपति ने मजदूरी भुगतान सूची भी दिखाई। लेकिन गांव वालों की माने तो यह सब फर्जीवाड़ा है। जिन लोगों का नाम सूची में है वो सभी काम पर आये ही नहीं और जो काम पर थे उनका नाम सूची में कहीं भी नहीं है।
टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और दतिया में जल संकट गंभीर है। हर गांव में चालू हैंडपंपों की संख्या घटकर 1 या 2 हो गयी है। तीन महीने पहले जो आंकड़े थे उसमें 16% की बढ़ोतरी है। सिर्फ़ 18 ऐसे गाँव हैं जो सुरक्षित जोन में हैं और वहाँ 10 से ज्यादा हैंडपंप चालू स्थिति में हैं। जब पीने के पानी की स्थिति में सुधार के लिए सरकारों द्वारा किये गए उपायों के बारे में अधिकारीयों से पूछा गया तो वह बगलें झांकते नजर आये। पिछले तीन महीने के कठिन दौर में यूपी के 72% गांवों और एमपी के 74% गांवों में सरकार द्वारा कोई काम न होने की रिपोर्ट है। इन हालातों के बावजूद मनरेगा का काम नदारत है।
मनरेगा के सम्बंध में कोर्ट ने भी निर्देश देते हुए कहा था कि मनरेगा पर निर्देश दिया जाए और देरी से भुगतान होने पर मुआवज़ा भी दिया जाये। लेकिन प्रधान और अन्य अधिकारीयों से बातचीत के बाद यहां की तस्वीर उलटी ही दिखाई दे रही है। गांवों में पानी की किल्लत, प्यासे जानवर और सूखते जल स्रोतों की स्तिथि भी अधिकारीयों को विचलित नहीं करती। अफ़सोस है की इस विकराल परिस्तिथियों में भी वह हाथ पर हाथ रख कर बैठे हैं।
इस विरोधाभास वाली स्तिथि में नुकसान सिर्फ गरीब किसान का है जो सूखे के चलते मजदूरी करने पर मजबूर है।
रिपोर्ट – प्रियंका सिंह