नई दिल्ली। देश में अब तक हुए सबसे बड़े घोटाले कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को फैसला सुना दिया है। 1993 से लेकर 2010 तक हुए दो सौ अट्ठारह कोयला खदानों में दो सौ चैदह खदानों का आवंटन रद्द कर दिया गया है।
इस फैसले को देने वाली टीम के प्रधान न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा हैं। अदालत ने जिन कंपनियों के लाइसेंस रद्द किए हैं। उन्हें अपना काम समेटने के लिए छह हफ्ते का समय दिया गया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि खदानों का लाइसेंस देते वक्त इसमें पारदर्शिता और जनहित का ख्याल नहीं रखा गया है। अदालत ने कहा कि कोयला जैसी राष्ट्रीय संपदा का वितरण अनुचित तरीके से किया गया था। 25 अगस्त 2014 को अपने फैसले में अदालत ने कहा था कि कोयला खदानों के आवंटन के लिए जितनी भी बैठकें की गईं थीं, उन सभी ने तथ्यों और पारदर्शिता को अनदेखा किया है। यह घोटाला कांग्रेस की अगुवाई में बनीं यू.पी.ए. सरकार के कार्यकाल में हुआ। प्रधानमंत्री उस समय मनमोहन सिंह थे। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत ही कोयला मंत्रालय था।
भारत जैसे देश जहां आज भी ज़्यादातर गांवों में बिजली नहीं पहुंच पाई है। वहां पर बिजली उत्पादन करने का एक महत्वपूर्ण ज़रिया कोयला बन सकता है। लेकिन कोयला खदानों का लाइसेंस बांटते समय जनहित को अनदेखा कर उन्हें निजी कंपनियों को बिना जांच पड़ताल बांट दिया गया। इससे सरकारी खज़ाने को अब तक एक लाख छियासी हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ।