चुनाव, चुनाव, चुनाव जिते देखो ओते चुनाव की ही चर्चा होत हती। आखिर असम जनता खा इन्तजार खतम हो गओ, ओर 30 अप्रैल 2014 खा महोबा के साथे बांदा, चित्रकूट ओर हमीरपुर आदि जिलन में मतदान सम्पन्न कराओ गओ।
का अपने देश में चुनाव ही रह जेहे?
अभे मार्च से लेके मई तक लोक सभा चुनाव की तैयारी में आदमी लगो रहो। एक साल खे बाद पंचायती राज को चुनाव होय खा समय हो जेहे।
जीमे छोट आदमी से लेके बडे़ अधिकारी तक चुनाव में फिर व्यस्त हो जेहे।
अब सवाल जा उठत हे कि सरकार के एते गांवन खा विकास को काम करवाये खे लाने बजट नइयां तो चुनाव में करोड़न हजार रुपइया खर्च खे लाने तिे से आउत हे?
हर चुनाव में सरकार करोड़न हजार रुपइया खर्च करत हे। अगर व्यवस्था देखी जाये तो न के बराबर रहत हे।
ईखा ताजा उदहरण महोबा शहर के जी.जी.आई.सी. कालेज में 30 अप्रैल 2014 खा हजारन खे गिनती में आदमी-ओरतन ने मतदान करो। जिते न पिये खे पानी की व्यवस्था हती न बेठे खे व्यवस्था हती। जभे कि मतदान से पेहले हर पार्टी ने मतदातन खे लाने हर प्रकार की वयवस्था देय खे बात कही हती।
कस्बाथाई मोहल्ला की पुनिया ओर कादी मोहल्ला की फूलारानी कहत हे कि नेता लोग पेहले कहत हते कि पेहले मतदान बाद में जलपान पे आदमी गुर दिखा के ढेला मारत हे। का सरकार खे एते आम जनता खे व्यवस्था करे खा बजट नई रहत आय। अगर प्रचार-प्रसार में इत्तो रुपइया खर्च करत हे तो जनता खे लाने काय नई खर्च करत आय?
मतदातन खा नई मिली व्यवस्था
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