भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामलों में 28 अगस्त को देश के कई राज्यों में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी और उनके ठिकानों पर छापेमारी से हंगामा मच गया।
इन पांच लोगों की गिरफ्तारी का मामला 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिका पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई करने पर सहमति जताई है।
याचिकाकर्ताओं ने भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए सभी कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की है। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मामले में ‘गिरफ्तारी के व्यापक दौर’ के लिए महाराष्ट्र से स्पष्टीकरण मांगने का भी अनुरोध किया है। साथ ही याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अपील की है कि वह भीमा-कोरेगांव मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के संबंध में सीधे स्वतंत्र जांच का निर्देश दें।
बता दें, महाराष्ट्र पुलिस ने 28 अगस्त को देश के कई राज्यों में कथित वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों में छापा मारा और माओवादियों से संपर्क रखने के संदेह में उनमें से कम से कम पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। पिछले साल 31 दिसंबर को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और उच्च जाति के पेशवाओं के बीच हुई हिंसा की घटना की जांच के तहत ये छापे मारे गए हैं।
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जांच के मद्देनजर छापे के बाद अब तक कवि वरवरा राव, अरुण पेरेरा, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया गया है।
इन सभी पर धारा 153 A, 505 (1) B,117,120 B, 13, 16, 18, 20, 38, 39, 40 और UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम ऐक्ट) के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस कार्रवाई का मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने घोर विरोध किया है।