एक अध्ययन अनुसार, यदि भारत, जाति और लिंग असमानताओं को कायम रखने वाले धार्मिक मान्यताओं को छोड़ दे तो आधे समय में, पिछले 60 वर्षों के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि को दोगुना कर सकता है।
साइंस जर्नल में प्रकाशित, एक अध्ययन कहता है, धर्मनिरपेक्षता आर्थिक विकास पर असर डालती है। अध्ययन ने वर्ल्ड वैल्यू सर्वे से डेटा का उपयोग किया है, जिसने 20 वीं (1900-2000) शताब्दी में धर्म के महत्व का अनुमान लगाने के लिए लोगों के बदलते मूल्यों और मान्यताओं को परखा।
109 राष्ट्रों में, धर्मनिर्पेक्षता के मामले में भारत 66 वें स्थान पर रहा। जबकि चीन पहला था, पाकिस्तान 99 वां, बांग्लादेश 104 वां और घाना आखिरी था।
भारत की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद प्रति वर्ष 1958 और 2018 के बीच 26 गुना बढ़ी है। रिसर्च ने पाया कि ये भारत के दो सबसे कमजोर सामाजिक समूहों – महिलाओं और हाशिए वाली जातियों से संबंधित हैं और ये दोनों ही प्रमुख धार्मिक मान्यताएं से सबसे अधिक जुडी हैं जो भारत के विकास को अधिकतम क्षमता तक पहुंचने से रोक सकती हैं.
सामाजिक और सांस्कृतिक कारक महिलाओं को भारत में अपने घरों के बाहर काम करने से रोकते हैं, केवल 27 फीसदी भारत की महिला कार्य करती हैं जो दक्षिण एशिया में सबसे कम है। अप्रैल 2017 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 2004-05 और 2011-12 के बीच, पिछली जनगणना के वर्ष में, 19.6 मिलियन भारतीय महिलाओं ने अपनी नौकरियां छोड़ीं हैं।
चीन, जिसके विकास का अनुकरण करना भारत का लक्ष्य है, धर्मनिरपेक्षता के मामले में पहले स्थान पर है।अमेरिका, एक विकसित देश जहां 2017 में, 10 सबसे बड़े शहरों में घृणित अपराध एक दशक के उच्चतम स्तर को छुआ, 57 वें स्थान पर रहा।
भारत में, धर्म ने समाज में अपनी जगह खो दी है, हालांकि देश ने आर्थिक विकास देखा है: वर्ल्ड वैल्यू सर्वे के नवीनतम दौर में 90 फीसदी से अधिक उत्तरदाताओं ने धर्म को “बहुत महत्वपूर्ण” या “बल्कि महत्वपूर्ण” बताया।
भारत और किर्गिस्तान केवल दो राष्ट्र हैं, जहां धर्म को जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानन वाले लोगों की प्रतिशत में पिछले एक दशक से 2014 तक 10 अंकों से अधिक की वृद्धि हुई है। भारत के लिए यह आंकड़ा 79.2 फीसदी से 91.3 फीसदी तक से 12.1 फीसदी की वृद्धि का है, जैसा कि सर्वेक्षण में बताया गया है।
नए अध्ययन का एक प्रमुख अधिग्रहण यह है कि नीति निर्माता आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की तलाश में हैं, विशेष रूप से समावेशी आर्थिक विकास– मौजूदा केंद्र सरकार के एक निर्दिष्ट उद्देश्य को धार्मिक विचार और अर्थव्यवस्था के बीच संबंधों पर विचार करने की आवश्यकता है।
जातिए विकास में एक और विभाजक कारक है। दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एमिटिटस आंद्रे बेटेल ने कहा, “जाति, रिश्तेदारी या परिवार, या तो ये सभी आर्थिक प्रगति में बाधा डाल सकते हैं।”
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खुशी सूचकांक 2018 के मुताबिक, 2014 मसे, भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी ऊपर की ओर बढ़ी है, भारत ने इस अवधि में असहिष्णुता में वृद्धि भी देखी है। गाय से संबंधित घृणित अपराध को रिकॉर्ड रखने वाले इंडियास्पेंड के डेटाबेस के अनुसार, वर्ष 2017 में सबसे ज्यादा मौत (11 मौतें) और 2010 से गाय और धर्म से संबंधित घृणित हिंसा (37 घटनाएं) की सबसे अधिक घटनाएं दर्ज की गईं हैं।
साभार: इंडियास्पेंड