भारत में जातिवाद वाले भ्रष्टाचार के कारण दूर-दराज के गाँवों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली सड़कें कभी तैयार नहीं हो पाएँगी, चाहे सरकार ने इसके लिए भुगतान कर दिया हो। जर्नल ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में इस बात का खुलासा हुआ है। अमरीका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय और फ्रांस के पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधार्थियों ने भारत की प्रमुख सड़क निर्माण योजना प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के परीक्षण के लिए अनूठी तकनीक का प्रयोग किया है।
जर्नल ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सड़क योजनाओं में 500 पक्की सड़कों के आंकड़ों के मुताबिक उनके लिए भुगतान कर दिया गया है कि लेकिन वे सड़के कभी नहीं बनी। शोधकर्ताओं ने इन गायब सड़कों को राजनीतिक भ्रष्टाचार से जोड़ा है। उनका कहना है कि स्थानीय नेता अपने लोगों को सड़क निर्माण का ठेका देते हैं। शोध के प्रमुख प्रोफेसर जैकब एन. शापिरो ने कहा, इस योजना में हुए भ्रष्टाचार से 8,57,000 ग्रामीणों को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचा है। इस योजना को वर्ष 2000 में शुरू किया गया था। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण इलाकों में सड़क-संपर्क से वंचित गांवों को बारहमासी (पक्की) सड़कों से जोडऩा था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि नतीजे चौंकाने वाले हैं क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को राजनीतिक भ्रष्टाचार रोकने के लिए मजूबत नियंत्रण के साथ पेश किया गया था। उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत प्रस्तावित नई सड़कों का उद्देश्य गांव में रहने वालों को आर्थिक अवसर प्रदान करना और सरकारी सुविधाओं जैसे शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच बढ़ाना था। भ्रष्टाचार के सबूत ढूंढऩे के लिए, शापिरो और उनके सहयोगियों ने विधानसभा के सदस्यों या विधायकों के हजारों चुनावों पर गौर किया। इसमें देखा गया सड़क निर्माण के ठेके उन ठेकेदारों को दिए गए जिनका उपनाम और विधायक का उपनाम समान था।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड