नई दिल्ली। 30 जुलाई 2013 को भारत का उन्तीसवां राज्य बनाया गया जब आंध्र प्रदेश राज्य के एक हिस्से को अलग करके तेलंगाना राज्य घोषित किया गया। अलग राज्य की पूरी तरह से व्यवस्था करने में चार से पांच महीने लगेंगे। आने वाले दस सालों तक दोनों राज्यों – तेलंगाना और आंध्र की राजधानी हैदराबाद ही रहेगी।
राजनीतिक दल तेलंगाना राष्ट्र समिति के आफिस में खुशी का माहौल छा गया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी फैसले का स्वागत किया। यू.पी.ए. की केंद्र सरकार पर दोनों राज्यों के लिए जल संसाधनों के बंटवारे का दबाव बना हुआ है। कांग्रेस के कई नेता इस फैसले से नाखुश हैं और नौ विधायकों ने मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। तेलंगाना के अलावा बाकी के राज्य में 31 जुलाई को दुकानें और साधन विरोध में बंद रहे।
तेलंगाना क्यों?
आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में दस जिलों में से सात को पिछड़ा माना जाता है। सालों से इस क्षेत्र के लोगों का कहना है कि तेलंगाना से राज्य की पैंतालिस प्रतिशत आमदनी होती है पर सरकारी फंड का सिर्फ अट्ठाइस प्रतिशत हिस्सा इस पिछड़े इलाके के विकास में लगाया जाता है। तेलंगाना की मांग करने वालों का कहना है कि जबकि राज्य की दोनों मुख्य नदियां – कृष्णा और गोदावरी इस क्षेत्र में बहती हैं, सिंचाई के लिए बनी नहरें ज़्यादा से ज़्यादा पानी राज्य के तटीय इलाके में पहुंचाती हैं। विकास और संसाधनों के बराबर हिस्से को पाने के लिए बहुत से लोग अलग राज्य की मांग कर रहे थे।
तेलंगाना के लिए लड़ाई
अलग राज्य बनाने की मांग 1969 में बड़े तौर पर की गई थी। 1972 में और फिर 1997 में इस मांग ने तेज़ी पकड़ी।
2002 से 2012 के बीच बहुत से धरने हुए, पुलिस और लोगों में हिंसा भी हुई। 2012 में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने एक बैठक के बाद एक महीने में मुद्दे पर फैसला करने का वादा किया।
2013 में सरकार के देर करने पर जगह-जगह धरने होने लगे। जून 2013 के धरने में लाखों लोग भाग लेने पहुंचे। एक बार फिर लोगों और पुलिस में हिंसा हुई।
भारत का नया उन्तीसवां राज्य – तेलंगाना
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