एक सर्वेक्षण ‘ऐन्यूअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ 2016 (एएसईआर) के अनुसार, 11 से 14 वर्ष की उम्र के बीच लगभग 3.5 फीसदी और 15 से 16 वर्ष की उम्र के बीच 13.5 फीसदी बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया था और जिस दिन खोज की टीम ने स्कूल का दौरा किया उस दिन कक्षा 1 से 8 तक के 25 फीसदी से अधिक बच्चे स्कूल से अनुपस्थित थे। ग्रामीण भारत में स्कूली शिक्षा और सीखने के स्तर का एक घरेलू सर्वेक्षण है। इस सर्वेक्षण में भारत के 589 जिलों में 3 से 16 साल के बीच 560,000 से अधिक बच्चों को शामिल किया गया था।
बच्चों के स्कूल छोड़ने या स्कूल नहीं जाने के परिणाम खतरनाक ही हैं। इससे शिक्षा प्रणाली की उत्पादकता में हानि होती है, क्योंकि उच्च ड्रॉप आउट दर से स्कूल शिक्षा की प्रति यूनिट लागत में वृद्धि होती है। साथ ही मानव संसाधन के विकास में गिरावट होती है।
राष्ट्रीय स्तर पर जब एसईआर टीम ने वर्ष 2016 में स्कूलों का दौरा किया तो प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1 से 4) या उच्च प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 5 से 7 /8) में नामांकित केवल तीन-चौथाई बच्चे ही कक्षा में उपस्थित थे।
पढ़ाई पूरी होने के बीच में ही स्कूल छोड़ देने या अनुपस्थिति की समस्या विशेष रुप से बीमारु राज्यों में ज्यादा है। हम बता दें कि बीमारु राज्यों में बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे कम विकसित राज्य शामिल हैं। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, इन राज्यों में 11 से 16 वर्ष की उम्र के बीच वाले 5.1 करोड़ से अधिक या भारत की कुल बाल आबादी के 46 फीसदी बच्चे हैं।
वर्ष 2013 और 2015 के बीच बिहार में नालंदा जिले और महाराष्ट्र में सतारा में आयोजित एएसईआर केंद्र के ‘मिडिल स्कूल स्टडी’ के अनुसार माध्यमिक विद्यालयों में स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण पहुंच है, लेकिन तथ्य बताते हैं कि स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण ‘रुचि की कमी’ है। तीन साल के इस अध्ययन में प्राथमिक स्कूल के बाद लगभग 6,000 बच्चों की शैक्षिक गति को ट्रैक किया गया है। वर्ष 2016 में स्कूल में दाखिला जारी रखने वाले बच्चों की तुलना में 11 से 16 वर्ष के आयु वर्ग वाले ऐसे बच्चे जिन्होंने 2015 से 2016 के बीच स्कूल छोड़ा है।
यहां यह मान लेना उचित है कि स्कूल में अनुपस्थित रहने वालों बच्चों की तुलना में नियमित स्कूल आने वाले बच्चों के सीखने के परिणाम बेहतर होते हैं।
स्कूल में कभी दाखिला न लेने वाले बच्चों की तुलना में ड्रॉप आउट यानी स्कूल छोड़ना एक बड़ी समस्या है। एएसईआर सर्वेक्षण- 2016 में पाया गया कि 11 और 14 वर्ष की आयु के बीच 1.1 फीसदी बच्चों ने कभी स्कूल में दाखिला नहीं लिया, जबकि 3.5 फीसदी बच्चों स्कूल ड्रॉप आउट हुए हैं।
11-14 साल की आयु वर्ग में, अन्य राज्यों की तुलना में बीमारू राज्यों में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में 6.3 फीसदी, मध्य प्रदेश में 5.8 फीसदी और राजस्थान में 5 फीसदी छत्तीसगढ़ में 4 फीसदी और झारखंड में 3.7 फीसदी। इन सारे राज्यों स्कूल में 11-14 साल की आयु वर्ग में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या 3.5 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से ऊपर है।
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में 11 से 16 आयु वर्ग में, लड़कियों के स्कूल छोड़ने की संभावना ज्यादा होती है। मध्य प्रदेश में, 15-16 साल की आयु वर्ग की 28 फीसदी लड़कियों ने स्कूल छोड़ा है, जबकि लड़कों के लिए ये आंकड़े 19.4 फीसदी रहे हैं। गुजरात में 22.5 फीसदी लड़कियों ने स्कूल छोड़ा , जबकि लड़कों के लिए ये आंकड़े 16.3 फीसदी रहे हैं।
अन्य बीमारू राज्यों में बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में 15 से 16 आयु वर्ग में लड़कियों की तुलना में लड़कों की स्कूल छोड़ने की संभावना ज्यादा होती है। लड़कों और लड़कियों के बीच के इस अंतर को समझ पाना बहुत आसान नहीं है और इस पर गहन अध्ययन की जरूरत है।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड