अमेरिका में भारतीय मूल के एक छात्र ने खारे पानी को पीने लायक बनाने का एक सस्ता और आसान तरीका खोज निकाला है। उसके इस शोध ने कई बड़ी तकनीकी कंपनियों और विश्वविद्यालयों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
चैतन्य करमचेदू ने अपने स्कूल की कक्षा में किए गए एक प्रयोग के कारण पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। वह ओरेगांव के पोर्टलैंड में रहते हैं और जेसुइट हाई स्कूल सीनियर के छात्र हैं।
करमचेदू ने सोखने की उच्च स्तरीय क्षमता वाले एक पॉलीमर के जरिये समुद्री पानी में घुले नमक को उससे अलग करने में सफलता पाई है। नमक हटने के बाद बचा पानी लायक हो गया था। पॉलीमर कुदरती तौर पर मिलने वाला या कृत्रिम रूप से बनाया गया एक यौगिक होता है। इसमें किसी सामान्य यौगिक की आपस में जुड़ी श्रृंखलाओं से निर्मित बड़े कण मौजूद होते हैं।
ज्यादातर शोधकर्ता पूरे समुद्री पानी को लेकर सोचते रहे हैं। लेकिन करमचेदू ने नया नजरिया अपनाया। उसने नमक के अणुओं से जुड़े 10 फीसदी समुद्री पानी की बजाय उससे नहीं जुड़े 90 फीसदी समुद्री पानी को पेयजल में बदलने पर ध्यान केंद्रित किया और सफल रहा।
चैतन्य करमचेदू के अनुसार, पानी के लिए समुद्र सबसे अच्छा स्रोत है। पृथ्वी के लगभग 70 फीसदी हिस्से में समुद्र है। लेकिन उसका पानी खारा है। समुद्री पानी से पेयजल बनाने का किफायती तरीके की तलाश में तमाम वैज्ञानिक वर्षो से लगे रहे हैं। उन्होंने कई तरीकों से समुद्र के पानी का खारापन दूर कर उसे पेयजल में बदलना चाहा, लेकिन सभी तरीके महंगे और अव्यावहारिक साबित हुए हैं।
ऐसे में करमचेदू ने अपने हाई स्कूल की प्रयोगशाला में खुद एक प्रयोग किया। उनका यह प्रयोग इस समय पर दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। एक टीवी ने बताया कि करमचेदू के पास दुनिया को बदलने की बड़ी योजनाएं हैं।
इंटेल के विज्ञान मेले में करमचेदू ने इंटरनेशनल ग्लोबल डेवलपमेंट का 10 हजार डॉलर का पुरस्कार जीता यह पुरस्कार एमआईटी के टेककॉन कांफ्रेस में दूसरा स्थान हासिल करने पर शोध के लिए राशि दी गई है।