राई नृत्य बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नृत्यों में से एक है। राई नृत्य बारहों महीने नाचा जाता है। बुंदेलखंडी जनमानस का हर्ष और उल्लास इस लोक नृत्य में अभिव्यक्त होता है। राई नृत्य समूचे बुंदेलखंड की पहचान है। इस नृत्य का आयोजन जहां भी होता है बुंदेलखंड के लोग सभी काम छोड़कर इसका आनंद लेने पहुंचते हैं। राई नृत्य बुंदेलखंड की धरोहर है।
राई नाच रचने वाली मंजुलता बताती हैं कि यह राजा महाराजों के जमाने से चला आ रहा है। इसराई नृत्य में बेड़नियाँ नाचती हैं और बेड़नी के अभाव में पुरुष स्त्री का रूप धर के नाचते हैं। इस नृत्य के साथ फागें गाई जाती हैं। राई के गीत ख्याल, स्वाँग आदि और भी कई प्रकार के होते हैं। बिहार उड़ीसा और अंडमान–निकोबार आदि जगहों पर जाना लगा ही रहता है।
बेबीराजा प्रजापति बताती हैं कि उनकी टोली में 15-20 लोग हैं। हम लोग लुप्त होती कलाओं और विधाओं को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हम कई प्रान्तों में अपनी कलाओं के प्रदर्शन के लिए जाते हैं। लोग वहां हमारे गीत सुनते हैं, हमारे नाच की तारीफ करते हैं, हमें बहुत अच्छा लगता है। मैं कई सालों से गीत गा रही हूँ और अब नृत्य भी करती हूँ।
वह आगे कहती हैं, जब पहली बार पुरुषों के बीच नृत्य करने उतरी थी तब बहुत घबराहट और डर लग रहा था। कभी ख्याल भी नहीं आया था कि इस पुरुषों की भरी भीड़ के सामने भी नाचना होगा। लेकिन फिर उनका सामना करने की आदत हो गई और अब अच्छा लगता है। हम जानते हैं यह सब कई लोगों को पसंद नहीं आता लेकिन यही मेरी पहचान है और इसके साथ ही मुझे एक दिन चले जाना है।
इन कलाकारों को अपनी कला से अत्यंत प्रेम है और ये इसे संजो कर रखना चाहते हैं। बुंदेलखंड की धरोहर कहे जाने वाले राई नृत्य को बचा कर रखने वाले इन कलाकारों को खबर लहरिया का सलाम।
रिपोर्टर- सुनीता प्रजापति