दुनिया भर के चालीस प्रतिशत बीज का व्यापार सिर्फ चार कंपनियों के हाथ में है।
पिछले दस सालों में इन कंपनियों ने दो सौ छोटी बीज कंपनियों को खरीद लिया है।
बीज बाजार चार कंपनियों के कब्जे में
इन कंपनियों के नाम हैं मोनसांटो, ड्यूपोंट, सिन्जेंटा
और डाओ एग्रोसाइन्स। ये चारों कंपनियां बीज में
रसायन प्रयोग करती हैं। यह बीज किसानों के नहीं,
बल्कि कंपनियों के हो जाते हैं, जो हर साल ऊंचे
दाम पर बेचे जाते हैं । मामूली किसान इन्हें एक बार
खरीद भी ले तो उन्हें बचा नहीं सकते। इससे सिर्फ
इन बड़ी कंपनियों का फायदा होता है। जो बीज इन
रसायनों के प्रयोग के बाद बनते हैं उन्हें हाइब्रिड
और जेनेटिकली मॉडिफाइड (जी. एम.) कहा जाता
है। जी.एम. बीजों से खाद्य फसल उगाना ज्यादातर
देशों में मना है क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
होती है। अमेरिका और भारत उन में से कुछ देश हैं
जो जी. एम. खाद्य फसल उगाते हैं।
आन्ध्र प्रदेश। इन बड़ी कंपनियों के जवाब में आन्ध्र प्रदेश राज्य की कुछ
चालीस महिलाओं ने मिलकर एक बीज बैंक खोला है। डेक्कन डेवलपमेंट
सोसाइटी (डी.डी.एस.) नाम की संस्था के सहयोग से कुछ चैंतीस महिलाओं ने
शुरू किया अपने बीजों को बचाना। जो बीज ये महिलाएं अपने बैंक में रखती हैं
वो ब़ड़े कंपनियों के बीजों के मुकाबले कम मंहगे होते हैं, कम पानी लेते हैं और
इन्हें उगाने के लिए कीटनाषक की जरुरत नहीं होती। इन बीजों को पुराने
तरीकों से बचाया जाता है। मिट्टी के घड़े में डालकर, बोरों में रखकर, इन पर
गोबर, राख, लाल मिटटी और नीम के पत्तों में रखकर इन में से नमी हटाई
जाती है और कीटाणुओं से बचाया जाता है।
महोबा में भी ऐसा ही बीज बैंक चल रहा है जिस मे घर घर जाकर बीज
इकट्ठा किया जाता है इन्हें बुआई के समय गरीब किसान को मुफ्त में दिया
जाता है। जिन किसानों की आर्थिक स्थिति थोड़ी बेहतर है उन से बहुत छोटी
रकम ली जाती है। अगर बीज के दाम इतने अधिक हो रहें हैं तो ऐसे कुछ
तरीकों से ही आज किसान आत्मनिर्भर हो सकेंगे।