जि़ला वाराणसी। 2 जनवरी को डॉ संदीप पाण्डेय को आईआईटी-बीएचयू, वाराणसी से निर्वासित कर दिया गया। इससे पहले 21 दिसंबर को आईआईटी-बीएचयू का बोर्ड ऑफ गवर्नर्स संदीप पाण्डेय की किस्मत का फैसला करने के लिए बैठा। बोर्ड के नौ सदस्यों में से सिर्फ छह मौजूद थे। जिनमें कुलपति (वीसी) गिरीश त्रिपाठी और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) के तीन सदस्य शामिल थे।
जब डॉ पाण्डेय के निर्वासन पर मतदान किया गया (देशद्रोही होने के लिए) तो दो सदस्यों ने इसमें भाग नहीं लिया। जिसका मतलब है आईआईटी-बीएचयू के नामवर प्रोफेसर को निर्वासित करने के प्रस्ताव का समर्थन नौ में से सिर्फ चार सदस्यों ने किया। ये तथ्य जनवरी में सामने आए जब डॉ पाण्डेय ने इस प्रक्रिया पर सूचना के अधिकार के तहत अर्जी डाली। जिस पत्र द्वारा प्रोफेसर का अनुबंध रद्द किया गया उसमें तथ्यों की कमी है। इसमें निर्वासन का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया है और इसे एक छात्र की शिकायत के आधार पर बताया गया है। ये छात्र कौन था?
आईआईटी के कुछ छात्रों के अनुसार, ‘‘आईआईटी में कोई भी नहीं है जिसने प्रोफेसर पाण्डेय के खिलाफ शिकायत की है’’। डॉ पाण्डेय का कहना है कि शिकायत राजनीतिक विज्ञान के एक छात्र द्वारा दर्ज की गई है जहां पर वो पढ़ाते भी नहीं हैं।
संदीप पाण्डेय के साथ जो हुआ वो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में हो रही घटनाओं की झलकी मात्र है। खबर लहरिया द्वारा की गई छानबीन से पता चला कि 2014 से जबसे भाजपा सत्ता में आई है और गिरीश त्रिपाठी वीसी बने हैं विश्वविद्यालय में गड़बडि़यां हो रही हैं।
शिक्षकों की नियुक्तियों और छात्रों के दाखिलों में अनियमितताएं सामने आने लगी हैं। अब जब विश्वविद्यालय में दाखिलों का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो रहा है खबर लहरिया ने बीएचयू में बदलते वातावरण पर एक नज़र डाली।
नकल करते शिक्षक
2015 में इतिहास विभाग असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए नियुक्तियां कर रहा था। इन नियुक्तियों में अशोक कुमार सोनकर और सत्यपाल यादव शामिल थे। ये दोनों बीएचयू के छात्र रह चुके हैं। हमारी छानबीन के अनुसार दोनों की डॉक्टोरल थीसिस में साहित्यिक चोरी की गई थी। सोनकर के शोध में अनुच्छेद ‘गढ़वाल का इतिहास’ नाम की किताब से उठाए हुए थे। यादव की थीसिस ‘काशी के गंगा घाट’ किताब की नकल थी यहां तक कि किताब में उसी क्रम और भाषा में आती हैं। जब हमने सोनकर से इस पर बात करने कि कोशिश की तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया।
नियुक्तियों के बुरे स्तर से परेशान होकर इतिहास विभाग के एक प्रोफेसर ने वीसी को 16 दिसंबर को पत्र लिखा। इस पत्र का अभी तक कोई जाबव नहीं मिला है।
इतना ही नहीं, सूत्रों के अनुसार प्रोफेसर बिंदा परांजपे को पिछले साल इतिहास विभाग का हेड ऑफ डिपार्टमेंट (एचओडी) बनना था। मगर उनकी जगह डॉ अरुणा सिन्हा तीसरी बार विभागाध्यक्ष बनी हैं जबकि नियमों के अनुसार एक बार से अधिक विभागाध्यक्ष नहीं रह सकते हैं। सूत्रों के अनुसार ऐसा डॉ अरुणा सिन्हा की आरएसएस के साथ बढ़ती नज़दीकी के कारण हो सकता है।
इतिहास विभाग के एक छात्र ने हमें बताया कि डाॅ सिन्हा क्लास में अक्सर संघ की तारिफ करतीं हैं। वो बच्चों से कहती है कि आरएसएस हिन्दुत्व को बचाना चाहता है, उसमें हमें मदद करनी चाहिए। डाॅ सिन्हा ने भी इस विषय पर बात करने से इनकार कर दिया।
पहले एबीवीपी, फिर आरएसएस
दाखिलों की प्रक्रिया में भी कई अनियमितताएं निकल कर आई हैं। आयुर्वेद के विभाग को ही ली। सूत्रों के अनुसार प्रक्रिया में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों को दूसरे छात्रों से अधिक लाभ पहुंचा है। परीक्षा में शीर्ष पर आए छात्रों को श्रेणी में नीचे किया गया ताकि एबीवीपी के छात्रों को जगह मिल सके। उदाहरण के लिए, तीसरी श्रेणी पर आए छात्र को तीसवीं श्रेणी पर कर दिया गया ताकि एक फेल हुए एबीवीपी छात्र को जगह दी जा सके।
डाॅ पाण्डेय का कहना है कि जब से वीसी त्रिपाठी आए हैं तब से बीएचयू में पढ़ाई का स्तर गिरा है।
बीएचयू के ब्रोचा मैदान में संध द्वारा लगातार मीटिंगें की जा रही हैं। दो हफ्ते पहले ही स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर मैदान ‘जय श्री राम’ के नारों से गूंज उठा। सूत्रों के अनुसार बीएचयू के प्रोफेसर अक्सर इन मीटिंगों में जाते हैं। पिछले साल से इन मीटिंगों में बीएचयू छात्रों की संख्या भी दुगनी तेजी से बढ़ रही है।