बिहार के सारण में रहने वाली 72 वर्षीय अविवाहित ज्योति ने अपनी इच्छा को एक जज्बा बना कर महिलाओं को एक नई राह दिखाई है। वो चाहती हैं कि महिलाएं किसी की मोहताज न हों, वे घर से निकलें और अपना खुद का रोजगार चलाएं। आज ज्योति की इसी जिद्द ने न केवल इस क्षेत्र की 3000 से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि सारण जिले के गांव-गांव तक शिक्षा व महिला सशक्तिकरण की ‘ज्योति‘ जला दी है।
करीब 80 गांवों में महिलाएं खुद रोजगार करती हैं। 3000 महिलाएं आज खुद से मोमबत्ती, सर्फ व दवा बना कर अपने परिवार का आधार स्तंभ बनी हैं। केरल की रहने वाली समाज सेविका ज्योति करीब 20 साल पहले सारण आई थी और यहां की महिलाओं का दर्द देख यहीं की होकर रह गई। ज्योति की पहल पर महिलाओं ने 150 समूह बनाए हैं और युवाओं ने 30 समूह तैयार किए हैं।
समाजसेवा के क्षेत्र में ज्योति को कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों ने मिलकर एक ‘एकता सहकारी समिति बैंक‘ बनाया है और कल तक जो महिलाएं कर्ज में जी रही थी वह आज इसी बैंक के बदौलत दूसरों को कर्ज दे रही हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में इस बैंक में महिलाओं ने मिलकर 60 लाख पूंजी जमा की है। जमा पूंजी से महिलाएं ऋण के तौर पर पैसा लेकर खेती करने व सर्फ, मोमबत्ती, पापड़ बनाने का काम करती हैं।
इस बैंक में शुरू के दौर में 12 हजार पूंजी इकट्ठी की थी, जो दो वर्ष में 60 लाख रुपये तक पहुंच गई है। शुरूआत में ज्योति को बिहार की भाषा का ज्ञान भी नहीं था, लेकिन आज स्थिति बदल गई है।