जि़ला सीतामढ़ी, डुमरा प्रखंड । सीतमढ़ी जिले में ज्यादातर ग्राम कचहरियां बिना न्यायमित्र के ही चल रही हैं। जिस कारण से कई मामले सुलझ ही नहीं पाते। क्योंकि थाने में अपनी फरियाद लेकर जाने वाले लोगों से पहले इन ग्राम कचरियों में मामला दर्ज कराने के लिए कहा जाता है। लेकिन यहां कोई कानूनी सलाह देने वाला ही नहीं है। 16 सितंबर को बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की मौजूदगी में हुई पंचायतीराज विभाग की समीक्षा में भी यह बात सामने आई। जुलाई, 2011 में 8402 नई ग्राम कचहरियों के गठन के बाद से सरपंचों को कानूनी सलाह देने वाला कोई नहीं है।
ऐसा ही एक मामला डुमरा प्रखंड के पंचायत परोहा के गांव सिमरा का है। यहां की सुनैना देवी की ज़मीन पर उनके बटईदार ने 24 फरवरी 2013 में कब्जा कर लिया था। इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कराने जब वह थाने गईं तो उनसे ग्राम कचहरी में यह मामला चलाने की सलाह दी गई। हालांकि उस वक्त उनसे कहा गया कि आपकी शिकायत लिख ली गई है। लेकिन डेढ़ साल बीतने के बाद भी जब पुलिस कार्रवाई नहीं हुई तो इस मामले के बारे में थाने में पूछताछ करने पर पता चला कि थाने में यह मामला दर्ज ही नहीं हैं। इसका कारण पूछने पर कहा गया कि यह मामला ग्राम कचहरी का है। परोहा ग्राम पंचायत की ग्राम कचहरी के सरपंच रामअवतार पासवान ने बताया कि न्यायमित्र के बिना कानूनी सलाह न मिलने के कारण यह मामला रुका हुआ है। उन्होंने बताया कि ग्राम कचहरियां बनने के बाद थाने वाले हर विवाद को यह कहकर टाल देते हैं कि यह मामला वहां निपटाओ। लेकिन बिना कानूनी सलाह भला सचिव और सरपंच क्या कर सकते हैं? डूमरा प्रखंड के पंचायती राज अधिकारी ने बताया कि परोहा ग्राम पंचायत ही नहीं बल्कि पूरे प्रखंड में पिछले तीन सालों से कोई न्याय मित्र नहीं हैं। कई बार इस पर बात जरूर हुई लेकिन पद खाली के खाली ही पड़े हैं।
क्या होती हैं ग्राम कचहरियां
गांव स्तर के छोटे मोटो मसलों और जमीनी विवाद को निपटाने के लिए ग्राम कचहरियां बनाई गईं हैं। इसमें एक सरपंच, एक सचिव और एक न्याय मित्र होता है। न्याय मित्र किसी विवाद में कानूनी सलाह देता है। न्याय मित्र के पद में किसी वकालत किए व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाता है। इनका वेतन प्रति ढाई हजार रुपए है।सीताम