जिला महोबा, ब्लाक कबरई, गांव दमौरा। एतें के गीता पत्नी मुन्ना की 4 जुलाई 2014 खा जिला अस्पताल में डिलेवरी भई हती। जीखी चेक अभे तक नई भंजी। ऊ इलाहाबाद बैंक महोबा के चक्कर काटत हे। गीता की सास सुखरानी बताउत हे कि एक तो हम फोन करो तो ऊ बहाना कर देत हे कि हम दूसरे गांव में हे। हम अपने से तीन सौ रूपइया की आटो करके बहू खा अस्पताल ले गये हते। जोन 24 घण्टे के भीतर हमें चेक देके छुट्टी कर दई। जभे हम महोबा इलाहाबाद बैंक चेक भजाउन गये तो ओते के कर्मचारी कहत हते कि बाद में आओ। हम चेक भजायें के लाने दो दइयां भटक आये हंे। अब बैंक वाले कहत हे कि पेहले आपन खाता खुलाओ तभई तुम्हाई चेक भजहे, ओर रूपइया खाता में भेजो जेहे। एई से हमने 500 रूपइया देके गीता के खाता खुलाओ हे। जित्तो हमें चेक में मिलने नइयां उत्तो हमाओ डिलेवरी लाये चेक भजायें ओर खाता खुलाये में खर्चा हो गओ हे। एई से लागत हे कि काय खा सरकारी सुविधा के नाम करे। आपन घरई में सब केछू कर लें।
महोबा इलाहाबाद बैंक के बाबू विकाश ने कहो कि जरूरी नही हे कि चेक खाता में भजहें। अगर अस्पताल के डाक्टर चेक के कोने में दो लाइन खिचा देत हे तो चेक को रूपइया खाता में भेजो जात हे। नई तो एसई भाज के रूपइया दे दओ जात हे।