जि़ला चित्रकूट। जि़ले में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन एन.आर.एच.एम. की योजना के तहत बनें महिला स्वास्थ्य उपकेन्द्र केवल नाम के लिए हैं। कहीं दीवार नहीं है कहीं खिड़कियां टूटी हैं। उपकेंद्रों के नाम से बनीं कई इमारतें तो पिछले पांच सालों से स्वास्थ्य विभाग को हैंडओवर किए जाने का इंतज़ार करते-करते ही जर्जर हो गई हैं।
यह योजना 2008 में शुरू हुई थी। इसके तहत चित्रकूट में एक सौ उन्तालिस उपकेन्द्र हैं। एक उपकेन्द्र की लागत करीब साढ़े सात लाख है। इमारतों की हालत बिना इस्तेमाल किए ही खस्ता हुई जा रही है। मानिकपुर में केवल सरैंया कस्बे का ही उपकेंद्र खुलता है। क्षेत्र की श्यामा देवी, राजा बद्दू, किरन, रामकली ने बताया कि ए.एन.एम और डाक्टर कहीं तो आते ही नहीं हैं, और कहीं भूले भटके कभी-कभी आ जाते हैं। गांव की महिलाओं को प्रसव के लिए ब्लाक जाना पड़ता है। कर्वी ब्लाक के गांव पथरौड़ी का उपकेन्द्र लगभग पांच वर्ष पहले बना था। लेकिन इसे पिछले साल ही शुरू किया गया। यहां की नथिया और कमला ने बताया कि इससे पहले हमें शिवरामपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जाना पड़ता था।
रामनगर ब्लाक, गांव बांधी, बिसौंधा यहां कि आशा का कहना है कि उपकेन्द्र पांच वर्ष से बना है पर अभी तक खुला नहीं है। मऊ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डाक्टर आर.के. तिवारी ने बताया कि इमारत बनने के बाद सालों उपकेंद्र शुरू करने में लग जाते हैं। कई इमारतें बिना इस्तेमाल के ही जर्जर हुई जा रही हैं। कई बार उच्चाधिकारियों केा लिखित भेजा जा चुका है। मानिकपुर अस्पताल के अधीक्षक विनय कुमार का कहना है कि पहाड़ी इलाका होने के कारण डाक्टर वहां जाना नहीं चालते। पुराने जिला अस्पताल के बड़े बाबू गिरधारी का कहना है कि मऊ में बाइस, रामनगर में सत्तरह, मानिकपुर में तंैतिस और कर्वी में छत्तीस उपकेन्द्र हैं। सभी चालू हैं। जहां के उपकेन्द्र बंद हैं। वहां के लोग लिखित दे ंतो जांच होगी।
बिना इस्तेमाल ही खंडहर बन रहे उपकेंद्र
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