बाल शिक्षा अभियान अब तो एक मजाक बन खे रह गओ हे। जीखो उदाहरण ज्योरैया गांव को पूर्व माध्यमिक विद्यालय बताउत हे। काय से ई विद्यालय में जुलाई 2014 से एकऊ मास्टर नइयां। प्राथमिक स्कूल के हेडमास्टर इन्चार्ज से मिली जानकारी के अनुसार स्कूल में सौ बच्चन के नाम लिखे हे। बसौरा गांव के प्राथमिक स्कूल के शौचालय में ताला बन्द रहत हें।
जा एक सोचनीय बात हे स्कूल में पढ़े वाली लड़की के लाने हे। काय से एक तो गांव को आदमी लड़की खा गांव से बाहर नई जायें देत हे दूसर जोन गांव में स्कूल हे ऊमें भी जा परेशानी हे। ईखे लाने सरकार कछू ध्यान नई देते हे। काय से लड़का तो कहूं भी जाके पढ़ सकत हे, बिटियन खा बाहर निकरब मुश्किल परत हे।
सवाल जा हे कि एक केती तो सरकार बच्चन खा देश को भविष्य कहत हे दूसर केती स्कूल के विवस्था ओर पढ़ाई के बारे में कोनऊ ध्यान नई देत हे। महोबा जिला के ज्यादातर स्कूलन मे एक जा फिर दो मास्टर मिलहें। बड़े-बड़े शहरन में तो बच्चा पढ़ लेत हें, पे गांव के बच्चा नई पढ़ पाउत हे। जीसे बच्चन को भविष्य बिना पढ़े रह जात हे।
सरकार नियम कानून बताउत हे ओर ओई ध्यान नई देत हे। सरकार खा तो पता रहत हे कि कोन मास्टर खा कभे रिटायार मैन होने हे, तो सरकार खा ऊखे जायें से पेहले ओते मास्टर की विवस्था कर देय खा चाही जीसे बच्चन की जिन्दगी न बरबाद हो।
अधिकारी स्टाप की कमी बता के आपन पल्ला काय झाड़ देत हे। स्टाप की कमी खा पूरा करें कि जिम्मेंदारी कीखी आय।
बाल शिक्षा बन गओ मजाक
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