नई दिल्ली। भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा बाल एवं ज़बरदस्ती विवाह कराए जाने वाले प्रस्ताव का सह प्रायोजक बनने से मना कर दिया है। यह बात सूचना का अधिकार कानून के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में 6 जनवरी 2014 को सामने आई। प्रस्ताव में बाल विवाह और ज़बरदस्ती कराने जाने वाले विवाह को 2015 तक पूरी तरह से खत्म करने को अंतरराष्ट्रीय एजेंडे में शामिल करने की बात है।
हालांकि प्रस्ताव को एक सौ सात देशों का समर्थन मिला। लेकिन भारत ने इसे अपने एजेंडे में शामिल करने से मना कर दिया। चिंता वाली बात यह है कि बाल विवाह के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। संयुक्त राष्ट्र संघ यानि दुनिया की सबसे बड़ी संस्था जहां पर सभी देशों में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन पर नज़र रखी जाती है। इसमें भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम का कहना है कि इस प्रस्ताव में बाल विवाह के साथ ज़बरदस्ती विवाह जुड़ने से परिभाषा में अस्पष्टता आ गई है।
बाल विवाह कानून-
मौजूदा कानून 2006 में बना। इसमें लड़के की उम्र 21 और लड़की उम्र 18 साल है। कानून का उल्लंघन करने पर दो साल की सज़ा और जु़र्माने का नियम है।
दिल्ली की संस्था ‘निरंतर’ बाल विवाह के कारणों को ढूंढने और उनका विश्लेषण करने के लिए एक सर्वे कर रही है। बिहार, राजस्थान, आंध प्रदेष, झारखंड और पष्चिम बंगाल को चुना गया है।
अभी तक सर्वे के नतीजों के अनुसार बेटे बेटी की शादी को मां-बाप अपना अधिकार समझते हैं। ऐसे में कानून बनाकर इसे खत्म करने का मतलब है कि उनके अधिकारों को छीनना। हालांकि बाल विवाह के लिए बने कानून को लागू करने में यह एक बहुत बड़ी बाधा है। लोगों का कहना है कि अगर शादी में देर होगी तो बच्चे अपनी पसंद से, दूसरी जाति या धर्म में शादी कर सकते है।