विश्वविद्यालयों में और खासकर छात्रावास में सुरक्षा के नाम पर लड़कियों से होने वाले दोहरे बर्ताव के खिलाफ पिंजरा तोड़ अभियान शुरू किया गया था, जिसनें अब दक्षिण के छात्राओं का भी सहयोग मिल रहा है। इस अभियान से अब 14 विश्वविद्यालयों की छात्राएं जुड़ चुकी हैं।
वहीँ, तमिलनाडु की छात्राएं अपना दर्द कुछ बयां करती हैं। वीआईटी, वेल्लोर की पुरानी छात्रा बताती हैं हमारे हॉस्टल(छात्रावास) के नियमों के कारण हम लड़कियाँ किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाती हैं।
कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए आज भी कॉलेज की लाइब्रेरी के दरवाजे रातभर खुले नहीं रहते हैं। कुछ हॉस्टल में तो इंटरनेट तक नसीब नहीं होता हैं। हॉस्टल के इन अजीबो-गरीब नियमों के कारण छात्राओं की पढ़ाई और उनके नौकरी के रास्ते भी कम होते जा रहे हैं।
शन्मुघा आर्टए साइन्सए टेक्नालजी एंड रिसर्च अकादेमी की एक छात्रा बताती हैं कि हमें किसी भी तरह की कोचिंग लेने के लिए हॉस्टल से बाहर नहीं जाने दिया जाता हैं, हम किसी भी दूसरे हॉस्टल के कार्यक्रम में भी हिस्सा नहीं ले सकते हैं।
हॉस्टल के इन नियमों पर कोई सवाल नहीं उठा सकता हैं। अगर कोई इन नियमों को तोड़ता हैं तो या वो हॉस्टल से निकाल दिया जाता हैं या फिर उसके चरित्र पर अंगली उठाते हुए उसे बेकार लड़की बोल दिया जाता हैं।
पता नहीं अब गर्ल्स हॉस्टल से ये ताले हटेंगे, जिससे हमारी लड़कियां बिना रोक टोक के आगे बढ़ सके।
साभार: द लेडीज़ फिंगर
बालिका छात्रावास की सख्ती के लिए ‘पिंजरा तोड़ अभियान’
पिछला लेख