गांव बारौन, ब्लाक महरौनी, जिला ललितपुर. गांव बारौन से पहली बार एक दलित लड़का( दशरथ) पुलिस कॉन्स्टेबल की नौकरी में अपना नाम निकला है|
दशरथ का कहना है कि मेरे पिताजी एक छोटे से किसान थे | इतनी खेती भी नहीं थी कि जिससे हमारे परिवार का अच्छे से गुजारा चला सके. स्कूल लेकर अब तक हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. जिस समय हम पढ़ाई करते थे तो हमारे पिताजी के पास फ़ीस के लिए पैसे नहीं होते थे|
ये सब देख करमई भी बहुत परेशान रहता था. मुझे भी दिक्कत होती थी चिंता होती थी कि हमारे पिताजी करें तो करें क्या।
क्योंकि उनके पास इतना पैसा भी नहीं है कि वह हमारे पढ़ाई की फीस भर सकें, जिस वजह से कई बार टीचर की डांट भी खाते थे. लेकिन मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी काफी मेहनत किया। 24 घंटा के समय में हम 18 घंटे पढ़ाई करते थे |
स्कूल भी हमारे गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर था जहाँ पैदल चलकर के पढ़ाई करने के लिए जाना पड़ता था. मैंने मन में थान लिया था कोई सरकारी नौकरी करूँगा जिससे मेरे पिता की आर्थिक हालत को सुधार सकूँ। और मैंने पुलिस कॉन्स्टेबल के लिए अप्लाई किया और इसी साल जून में मेरा सलेक्शन हो गया|
अभी मेरी पोस्टिंग कर्वी में है. मुझे ख़ुशी है मैंने जो सोचा था वो कर पाया। बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन अपने पिता की कुछ तो मदद कर पता हूँ। अभी घर में सब खुश है. और उम्मीद करते है की आने वाले दिन में और ऊंची पोस्ट पर जाऊं। हमारे परिवार वाले बहुत खुशी महसूस कर रहे हैं कि हमारा बेटा पुलिस की जॉब में गया है और मैं भी।
दशरथ के पिता गणपत का कहना है कि चाहे जितनी भी परेशानी उठानी पड़ी लेकिन बच्चे को हमेशा हौशला दिया कि एक दिन जरूर सफल होंगे। क्योकि हम छोटे किसान है. खेती कभी सूखा कभी बाढ़ तो कभी एना जानवर की भेट चढ़ जाता है. अब बीटा कमाने लगा तो सब दुःख दूर हो जाएंगे