खबर लहरिया बाराबंकी बाराबंकी के हैदरगढ़ में बज उठे ढोलक

बाराबंकी के हैदरगढ़ में बज उठे ढोलक

जिला बाराबंकी, ब्लॉक हैदरगढ, 23 दिसम्बर 2016। आपने कभी न कभी ढोलक पर हाथ मारकर ताल तो जरुर दी होगी। पर क्या आपने कभी सोचा हैं कि ये ढोलक बनती कैसे है? तो चलिए आज हम आपको हैदरगढ में ढोलक तैयार करने वाले करीगारों से मिलते हैं।

55 साल के दिलावर 16 साल के उम्र से ढोलक बनाने का काम कर रहे हैं। वह कहते हैं, “आप तो सिर्फ तैयार ढोलक देखते हैं। पर इसका सामान हमें अलग-अलग जगहों से मांगवाना पड़ता हैं। जैसे ढोलक की लकड़ी कानपुर से तो रंग, कलपुर्जे जैतपुर और ढोलक में लगने वाला चमड़ा अमरोहा से आता है।” झुग्गी बस्तियों में रहने वाले ये लोग बहुत ही गरीब हैं।

ढोलक में इस्तेमाल होने वाली लड़की भी आम, कटहल, नीम और सीसम के पेड़ की होती है। ढोलक से अच्छी आवाज़ निकलने के लिए इसमें लाल, बेलवा, तूतिया, गिरिस और लेहसून का लेप लगाया जाता हैं। जिससे एक खास तरह की आवाज़ निकलती है। ये लेप भी ढोलक में एक तरह ही लगाया जाता है, दूसरी तरफ टंकी होती है।

नसरुदीन, 59, ढोलक में प्रयोग होने वाली चमड़े के बारे में बताते हैं कि वह बकरे और ऊंट की खाल से बनी होती है। ये कारीगर सर्दी के मौसम में 10 ढोलक तो गर्मी के दिनों में 15 ढोलक बनाकर तैयार कर देते हैं।

35 साल के उमर ढोलक के सांचों में रंग लगाते हुए कहते हैं कि इस काम में अच्छा लगता है और वह 15 सालों से यहीं काम कर रहे हैं।

ढोलक बनाने में दिन भर मेहनत करने वाले इन कारीगरों को सर्दी के दिनों में कम खरीदार ही मिलते हैं, वहीं होली के मौसम में तो खूब ढोलक खरीदी जाती हैं। यही हाल नवरात्रि के दिनों में भी रहता है। पर इन अवसरों के अलावा इन लाल, पीली, काली और भूरे रंग में पूती ढोलकों को लोग नहीं खरीदते और इन्हें बनाने वाले दो रोज की रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से करते हैं। पर वे इस काम को छोड़कर दूसरे रोजगार में नहीं लग सकते हैं, क्योंकि ये उनका हुनर है।

रिपोर्टर- फिजा और नसरीन

20/12/2016 को प्रकाशित