ओडिशा राज्य के नियमगिरी में पिछले महीने एक अलग इतिहास रचा गया। बारह ग्राम सभाओं ने अंतरराष्ट्रीय कंपनी वेदांता से अपने वातावरण और अपने अस्तित्व के एक अहम हिस्से को बचाया। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि वेदांता नियमगिरी में एलुमिन्यम का खनन सिर्फ प्रभावित होने वाले बारह ग्राम पंचायतों की अनुमति से कर सकती है।
सालों से वेदांता से लड़ रहे नियमगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासी खुद एलुमिन्यम के खनन पर फैसला कर पाए। अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का भारत आना और भारत के संसाधनों का प्रयोग कर मुनाफा करना – ये कोई नई बात नहीं है। 2004 में जब वेदांता नियमगिरी पहुंचे, तब से अब तक लोगों ने कंपनी को करारा जवाब दिया। स्थानीय लोगों से बनीं नियमगिरी सुरक्षा समिति अपने आप में एक बड़ा कदम था। लोगों ने एक साथ होकर अपनी आवाज़ उठाई। राज्य सरकार के वेदांता का पक्ष लेने पर भी आम लोगों की ये लड़ाई ठंडी नहीं पड़ी।
लोक आंदोलन की सफलता का ये उदाहरण खास है। ऐसा हमेशा नहीं होता। विकास के नाम पर ऐसे बहुत से कामों को सरकार मंज़ूरी देती है जो स्थानीय लोगों की ज़मीन और उनके बसेरों को उजाड़ देते हैं। ओडिशा में ही एक और कंपनी पौस्को के खिलाफ लड़ाई जारी है। दोनों आंदोलनों में लड़ते कई लोग मारे भी गए। मध्य प्रदेश में एक बड़े बांध के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन 1989 से चल रहा है। बड़ी कंपनियों के मुनाफे और कुछ लोगों की सुविधा के लिए अकसर छोटे, ग्रामीण समुदायों को कीमत चुकानी पड़ती है। एक ऐसे समय पर जब लोकतंत्र की कमियां ही नज़र आती हैं, देशभर में इस एक आंदोलन से एक नई ऊर्जा पैदा होने की उम्मीद जागी है।
बारह ग्राम सभाएं, एक ऐतिहासिक फैसला
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