जिला बांदा। बाजारो में रंग- गुलाल और पिचकरियों की दुकान सजी हुई थी। होलिका दहन के पूरे दिन बाजार में चहल-पहल बनी रही। जहां लोग पकवान के लिये मेवा, खोया और घी तेल कि समाग्री खरीदते रहे। वहीं बच्चे पिचकारियां रंग और गुलाल खरीदने में मस्त रहे। बाजार में पिचकरी की सजी दुकानें बच्चों को आकर्षित कर रही थी। तरह-तरह की आधुनिक डिजाइनों में बिकने वाली पिचकारियों से दुकानदार अपने दुकानों को सजाए हुए थी।
फाल्गुन का महीना शरू होते ही वातावरण में मस्ती भर जाती है। सभी होली का इंतजार करने लगते हैं। यह ऐसा महीना है जिसमें सभी मदमस्त दिखाई पड़ते है। अलग-अलग क्षेत्रो में अपने तरीके से होली मनाई जाती है। जैसे कि उत्तर प्रदेश के मथुरा कि लठमार होली पूरे देश में मशहूर है। इसी तरह बुन्देलखण्ड के बांदा जिले में कपड़ा फाड़ होली दूसरे दिन मनाई जाती है। यहां पर दशहरा की तरह होली भी तीन दिन मनाई जाती है, जिसकी तैयारियां फाल्गुन का महीना शुरू होते ही होने लगती है।
बूढ़े बच्चे और जवान इस रंग, तरंग और उमंग भरे त्यौहार को अपने-अपने तरीके से मनाते है। पर समय के साथ होली मनाने की परंपराएं भी बदलने लगी है। एक समय था जब लोग दरवाजे-दरवाजे जाकर फाग गीत गाते और ढ़ोल, मंजिरे के साथ नाचते थिरकते थे और हंसी मजाक करते थे, पर कोई बुरा नहीं मनता था। अब परंपराएं बदल गई है, पर कुछ गांव में अभी भी फाग के गीत बजते हैं।
बांदा की कपड़ा फाड़ होली
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