जिला बांदा, थाना बदौसा। देश में घरेलू हिंसा को रोकने के लिए 2006 में ‘घरेलू हिंसा अधिनियम 2005’ को लागू किया गया था, जिसके तहत महिला को घर की चारदीवारी के अन्दर हिंसा, मारपीट और किसी भी प्रकार का उत्पीड़न को इस कानून के अन्दर रखा गया है। पर आज भी देश में लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी प्रकार की घरेलू हिंसा के शिकार होती हैं।
एक दुखद बात ये है कि हिंसा की छोटी-मोटी घटनाएं तो घर के ही अन्दर रहती हैं और सिर्फ तब ही बाहर आती हैं, जब वे बड़ा रुप ले लेती हैं।
ऐसी ही दो घटनाएं बुंदेलखंड के बांदा जिले में घटित हुई। पहली घटना में महिला के पति ने उसकी नाक हंसिया से काटने की कोशिश की। वहीं दूसरी घटना में पति ने अपनी पत्नी को मामूली विवाद पर हंसिया से गर्दन पर वार करके उसे मार डाला।
बांदा के भवई गांव में रहने वाली गुडिया, 28 को उसके पति शिवप्रसाद ने 28 दिसंबर 2016 को मारपीट की, साथ ही उसकी नाक हंसिया से काटने की कोशिश की। शिवप्रसाद जब इस कोशिश में कामयाब नहीं हो पाया तो उसने गर्म तेल गुड़िया के मुंह पर डाल दिया। गुड़िया यहां से अपनी जान बचाकर नरैनी पहुंची। वहां गिरवां थाने में उसने तहरीर दी। गुड़िया के मायके वाले उसके पति पर गुड़िया को जान से मारने का आरोप लगा रहे हैं, वहीं गुड़िया के ससुर मोतीलाल का इस घटना पर कहना हैं, “वह पागल हैं और उसने खाना बनाते समय खुद पर तेल गिर लिया है। उस पर किसी और ने तेल नहीं गिराया है।” गुड़िया का मुंह तेल से पूरी तरह से झुलसा हुआ हैं, साथ ही दोनों हाथों पर भी तेल गिरा हुआ है। ऐसी हालत में गुड़िया को खाने-पीने में भी परेशानी हो रही है और वह अपने मायके में है।
दूसरी घटना में, बांदा के बदौसा क्षेत्र के चंदौर गांव की हैं, जिसमें 25 वर्षीय आरती को उसके पति सुलखान ने 18 जनवरी को हंसिया से हत्या कर दी। सुलखान ने आरती के चेहरे और गले पर कई बार हंसिया से वार किए। इस घटना के बाद आस-पास के लोगों ने बताया कि आरती ने कभी अपने पति से लड़ाई होने की बात घर से बाहर नहीं आने दी। शायद इस ही वजह से आरती आज जिंदा नहीं है।
आरती के ससुर शिवकुमार यादव बताते हैं कि जिस समय ये घटना हुई थी, उस समय घर में कोई नहीं था। “मेरा बेटा जुआरी, शराबी और गांजा पीता हैं, उसका दिमाग ठीक नहीं रहता है। वह नशे से धुत होकर बहू के साथ मारपीट करता था।” इस घटना के बाद अब शिवकुमार अपने बेटे को कड़ी सजा दिलाना चाहते हैं। हालांकि अब सुलखान सलाखों के पीछे है। पर एक सवाल अभी भी मन में है कि गुड़िया और आरती के पतियों ने उनके साथ मारपीट पहली बार नहीं की थी। पर अति होने पर ही उन दोनों पर होने वाला अत्याचारों का सबको पता चलता है। बड़े दुख की बात हैं कि आरती को तो अपनी जान से ही जाना पड़ा।
ऐसी हिंसा को रोकने के लिए कानून तो हैं, पर पति परमेश्वर वाली सोच के चलते शुरुआत में ही ऐसी घटनाओं को रोका नहीं जाता और सब कुछ खत्म होने पर सिर्फ अफसोस जताए जाते हैं।
रिपोर्टर- मीरा देवी और गीता
Published on Jan 23, 2017