इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी ऐंड लंग डिजीज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में भारत में टीबी से ग्रस्त करीब 1.2 लाख बच्चों की पहचान की गई। ये बच्चे 14 साल की उम्र तक के थे। बच्चों में टीबी के मामलों को लेकर इस रिपोर्ट में एक सूची भी दी गई है जिसमें भारत को दुनियाभर के देशों में पहले स्थान पर रखा गया है।
भारत से ज्यादा आबादी वाला चीन दूसरे स्थान पर है। हालांकि वहां बच्चों में टीबी के नए मामले भारत की तुलना में आधे से भी कम हैं।
एक अंग्रेजी अख़बार के अनुसार, रिपोर्ट जिनेवा में चल रही विश्व स्वास्थ्य गोष्ठी में पेश की गई। ‘द साइलेंट एपिडेमिक: अ कॉल टु एक्शन अगेंस्ट चाइल्ड टीबी’ नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर के बच्चों में हर साल टीबी के करीब 10 लाख नए मामले सामने आ जाते हैं। ऐसे हर चार बच्चों में एक की मौत हो जाती है।
यही नहीं, टीबी से ग्रस्त करीब 90 फीसदी बच्चों को इलाज ही नहीं मिल पाता और भारत भी इससे अछूता नहीं है।
20 देशों में विश्लेषण किए गए आंकड़ों से पता चला है कि भारत में 1.2 लाख बच्चों में टीबी पाया गया है, इसके बाद चीन 53,000 और फिलीपींस में 14,000 आयु वर्ग के 37,000 बच्चे शामिल थे।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि कई बार फेफड़ों के टीबी से ग्रस्त बच्चों को वक्त पर इलाज न मिलने से यह बीमारी हड्डियों, जोड़ों और दिमाग तक पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है।
उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन में उप महानिदेशक और टीबी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं कि इस बीमारी से मुक्ति के लिए इसकी रोकथाम की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों को बढ़ाना होगा।
उनका कहना है, ‘झुग्गी बस्तियों जैसे जिन इलाकों में इस बीमारी का ज्यादा खतरा है वहां घर–घर जाकर संपर्क करना होगा। यह काम कुछ मश्किल है लेकिन परिवार के स्तर पर जांच के बाद पीड़ित का सही और पूरा इलाज सुनिश्चित करना होगा।’ उनका यह भी कहना है कि टीबी का इलाज अब और आसान हो गया है क्योंकि इलाज का वक्त घटा है और दवाइयों की गुणवत्ता भी बढ़ी है।