फिल्मों के लिहाज से पिछला साल हिरोइनों के नाम रहा। 2014 की शुरुआत ‘डेढ़ इश्किया’ जैसे फिल्म से हुई। नसिरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज कलाकार पर माधुरी और हुमा कुरैशी की जोड़ी भारी पड़ी। इस कहानी में दो औरतें बेहद होशियारी के साथ पारंपरिक ढांचे को तोड़कर बिना किसी पुरुष के प्रेम में पड़े एक अलग राह चुनती हैं।
फिर आई ‘हाईवे’ और ‘क्वीन’ जैसी फिल्में। आलिया भट्ट ने साबित कर दिया कि चंचलता के अलावा उनमें अच्छे हीरो को मात देने की क्षमता भी है। मध्य वर्गीय परिवारों से निकली एक लड़की की कहानी ‘क्वीन’ फिल्म तो हर दिल में उतर गई। इसमें कंगना रनाउत एक बार फिर पारंपरिक खांचे से बाहर निकलते हुए अपनी शादी टूटने के बाद विदेश की सैर पर निकल पड़ती हैं।
‘गुलाब गैंग’ में महिलावादी संगठन गुलाबी गैंग की तर्ज पर बनी। फिल्म में नायिका और खलनायिका दोनों ही ने बता दिया कि बिना किसी हीरो के भी अच्छी फिल्में बन सकती हैं। विद्या बालन तो खैर नायिका प्रधान फिल्मों के लिए मिसाल बन गई हैं। ‘बाॅबी जासूस’ फिल्म में भी उन्होंने एक बार अपनी कलाकारी का लोहा मनवाया।
एक इंस्पेक्टर के तौर पर ‘मर्दानी’ फिल्म में तो रानी मुखर्जी छा गईं। ‘मैरी कॉम’ में मुक्केबाज़ बनीं प्रियंका चोपड़ा ने भी असली मैरी कॉम को जिया। अंत में ‘खूबसूरत’ में बतौर नायिका सोनम कपूर ने फवाद खान को बहुत पीछे छोड़ दिया। तो अब एक बात तो साफ है कि फिल्मों में अब तक केवल हीरो को सपोर्ट करने के लिहाज से रखी जाने वाली हिरोइनें केंद्रीय भूमिका में आ चुकी हैं।
फिल्मी दुनिया से – मुख्य भूमिकाओं में धमाल मचाती हिरोइनें
पिछला लेख