हिंदी फिल्म ‘लायर्स डाइस’ हिमाचल प्रदेश के गांव की एक आदिवासी औरत की कहानी है जो अपने पति को ढूंढ़ने दिल्ली पहुंचती है। उसका पति शहर में मज़दूरी के लिए गया था लेकिन लौटकर नहीं आता है। इस फिल्म के ज़रिए गांवों से शहरों की तरफ हो रहे पलायन और सरकार द्वारा गांवों के विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं की पोल खोली गई है।
इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। अब इसे 2015 में अमेरिका में हर साल मार्च के महीने में होने वाले ‘औस्कर अवार्ड’ सम्मान के लिए चुना गया है। फिल्म की निर्देशक गीतू मोहनदास हैं। नायक नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (जिन्हें ‘गैंग्ज़ आफ वासेपुर’ में देखा गया था) और नायिका गीतांजलि थापा हैं। गीतांजलि थापा उत्तर पूर्व में सिक्किम राज्य की हैं। औस्कर की होड़ में हाल में रिलीज़ हुई ‘मैरी कौम’ फिल्म की दावेदारी सबसे ज़्यादा मज़बूत मानी जा रही थी।
औस्कर अवार्ड का इतिहास
1929 से अमेरिका में फिल्मों के लिए सबसे अहम और बड़ा सम्मान है ‘औस्कर अवार्ड।’ 1957 में पहली बार अमेरिका के अलावा दूसरे देशों की फिल्मों को यह सम्मान देने के लिए एक खास श्रेणी बनाई गई।
इस श्रेणी के लिए कई देश अपनी एक फिल्म को भेजते हैं जिनमें से आखिरी चरण में केवल पांच से सात फिल्में चुनी जाती हैं। इनमें से एक फिल्म को यह सम्मान मिलता है।
भारतीय फिल्मों में सिर्फ तीन फिल्में आखिरी चरण तक पहुंची हैं – 1957 में ‘मदर इंडिया’, 1988 में ‘सलाम बौम्बे’ और 2001 में ‘लगान’।